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Bhãgyshree Saini

Children Stories Children

3.6  

Bhãgyshree Saini

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मेरा नन्हा सा बचपन

मेरा नन्हा सा बचपन

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जाने कहां गया

वो मेरा नन्हा सा बचपन

जिसकी आंखों में था 

गुड़िया के संग खेलने का

स्वप्न।।


जाने कहां गया वो

मेरा नन्हा सा बचपन।

ना कोई चाह थी, ना कोई

लक्ष्य, बस पापा के कंधों

पर बैठकर उनकी मूछें

खींचने का था स्वप्न।।


मां ओर भाई के साथ

लुका छिपी खेलने का आनंद

ओर नाना नानी के बाहों में सर

रखकर सोने का सुकून।

जाने कहां खो गया

वो मेरा नन्हा सा बचपन।।


ना होड़ थी आगे बढ़ने की

ना जंग थी किसी से लड़ने की

बस एक ही इच्छा थी

अपनी गुड़िया के संग खेलने की

मिट्टी के घर बनाने की।

न जाने कहां खो गया

वो मेरा नन्हा सा बचपन


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