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Bhãgyshree Saini

Abstract

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Bhãgyshree Saini

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मिट्टी

मिट्टी

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एक अनोखा रिश्ता है मिट्टी से मेरा, 

इस मिट्टी में ही सब मिल जाता है।


बीज से पौधा,पौधे से पेड़ बन जाता है 

इस मिट्टी में ही सब मिल जाता है।


घर को रौशन, भोजन का साधन 

इस मिट्टी में सब मिल जाता है।


मिट्टी की सोंधी खुशबू मन मोह लेती है

एक पल में सारी थकान खो देती है।


एक अनोखा रिश्ता है मिट्टी से मेरा,

इस मिट्टी में सब मिल जाता है।


बन के दीपक घर रौशन कर देता है 

इस मिट्टी में सब मिल जाता है।


हर रुप में ढल जाती हूं मैं,कभी घड़ा तो 

कभी खिलौना बन जाती हूं।


क्यूं किसी से बेर कर, मन से सब को 

प्रेम कर,

एक दिन सबको मिट्टी बन जाना है।


किसका अभिमान में करू,सूखे पत्तो की तरह

बिखर कर,

मुझे भी एक दिन मिट्टी में ही मिल जाना है।


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