रोशनी
रोशनी
माना कि काली रात बहुत लंबी हो गई
मैं तो अंधेरे में जानें कितनी बार गिरा
जानें कितनी बार मुझे चोट लगी है
लेकिन हर बार उठकर मैं सिर्फ रोशनी की
बस एक किरणों की खोज करता हूं
जैसे मुझे लगता है कि बस अब सवेरा होने वाला है
वैसे ही ये जो रात थी कुछ और ही गहरी लगी थी
मैं कितना भी देखने की कोशिश करता हूं
हर बार अंधेरे में मेरा हाथ भी नहीं देते
एक पल के लिए तो लगा शायद ये रात
कभी खत्म ही नहीं होगा
लेकिन दूसरे ही पल ये लगा
कि दुख के बाद सुख आता ही है तो
फिर रात के बाद दिन कैसे नहीं आएगा
बस अब तो मैं अपनी आंखों से
उस सूरज को देखना चाहता हूँ
जिसे ना देखने के लिए
अंधे ने मुझे बहुत घायल कर दिया
लेकिन मुझे ये यकीन है कि मैं आकाश में हूं
उस सूर्य को तो बेशक देख लेंगे
क्योंकि ये जो उदय है वो
केवल सूर्य का ही नहीं होगा
बल्कि मेरा भी होगा