नारी का मन
नारी का मन
अपनो और सपनों में भागती
एक नारी का पीछा करते
क्या कभी तुमने उसे देखा है
रिश्तों के कुरुक्षेत्र में यों
अपने...आपसे लड़ते हुए ।
तन के भूगोल से परे
एक नारी के मन की
खोलकर गाँठे
क्या कभी तुमने पढ़ा है
खौलता इतिहास उसके भीतर का
अगर नहीं
तो फिर जानते क्या हो तुम
रसोई और बिस्तर के गणित से परे
एक नारी के बारे में....।