क्यों सिमट कर रह गई मैं
क्यों सिमट कर रह गई मैं
क्यों सिमट कर रह गई मैं
अपने ही मन के भाव में
मन मारता था क्यों कुलाचें
जीवन के भावी चाव में
है सभी कुछ पास मेरे
फिर भी मन बेचैन है
भावनाओं की कद्र है ना
रहते सजल ही नयन है
अपने विचारों में पलूं
पर हूँ नहीं आजाद में
चख नहीं सकती कभी
निज सोचना का स्वाद मैं
एक दरें में जीवन चल रहा
पंख मेरे बंद है
आकाश में मैं उड़ सकूँ
मेरे लिए पाबंद है
मन की उमंगें, पींग भूलों की
थम सी गई है अब सभी
विचरण करूं आकाश में
ना यह मुझे संभव कभी
कल्पनायें कष्ट में है
जोश में जीवन नहीं
इस अनोखी भीड़ में
जाने गई मैं खो कहीं