"प्राकृतिक दोस्त"
"प्राकृतिक दोस्त"
बातें करने के लिए;
अपने मन के भाव व्यक्त करने के लिए;
किसी शख्स का होना जरूरी तो नहीं,
मैने तो अक्सर पेड़ पौधों से बाते की हैं।
कभी फूलों के साथ मुस्कुराया तो ;
कभी उनकी खुशबू में सुधबुध गवाया।
कभी हसीन फिज़ाओं में गुनगुनाया तो;
कभी रिमझिम बारिश में झूम के नाचा मेरा मन।
कभी तितलियों के पीछे भागी, तो;
कभी गिलहरी की उछल-कूद देख ;
खुश हो गया मेरा मन।
कभी उगते हुए सूरज को निहारा तो;
कभी चांद से हाल ए दिल बयां किया।
कभी बालकनी में बैठे पक्षियों से की गुफ्तगू;
तो कभी गौ माता को सहला के उनका हाल पूछा।
हां, दिया है जवाब पशु पक्षियों ने भी सिर हिला के ।
रोज़ मेरी रसोई की खिड़की पे आके
जब कबूतर और गौरैया बुलाते हैं मुझे ,
बड़ा आनंद आता है ;
उनको खाना देके उनसे बातें करके।
शुक्रिया है इन सब खास प्राकृतिक दोस्तों का
जिन्होंने बचपन से अभी तक दिया है साथ ।
आभार है उस अद्भुत शक्ति का जिसने दिया,
यह समय, यह अमूल्य जीवन, यह खास दोस्त।
