अहम ...
अहम ...
अहम , इक छोटा सा शब्द है,
पर ना जाने कितनी जिंदगियों को उजाड़ा है ।
न जाने कितने घरों में कलह का कारण बना ।
न जाने कितनी दोस्ती में दरार की वजह बना ।
न जाने कितने रिश्तों को तोड़ दिया।
न जाने कितने गुणवान लोगों की गुणवत्ता को गलत आंका ।
इक छोटा सा शब्द , अहम .....
क्यूं इतना बड़ा कर रखा है कद इसका,
सबने अपनी जिंदगी में ।
अहम को ठेस न पहुंचे,
रिश्ता टूटता है तो टूटे सही।
क्यूं इंसान इतना स्वार्थी हो गया है,
कि उसको अपनों की अहमियत से ज्यादा
अपने अहम की अहमियत है।
अहम, इक छोटा सा शब्द है,
पर ना जाने कितनी जिंदगियों को उजाड़ा है।