तू अजनबी नही जिंदगी
तू अजनबी नही जिंदगी
अजनबी सी कभी लगती है,
कभी तू अपनी सी लगती है।
कभी रुलाती तू बहुत है ऐ जिंदगी,
शूल भी चुभाती भी है तो क्या,
मुझे फिर भी तू प्यारी लगती है।
तेरे दिए हर शूल से ही तो,
फूल बन मैं निखरती हूँ सदा।
तेरे हर अश्रुओं से,
निर्मल अंतस पा जाती हूँ मैं,
फिर कैसे करूँ तुझसे शिकवे,
जब तू गढ़ रही है,
मुझे पल पल,
तेरे हर कष्ट को कर स्वीकार,
मैं निखार पाती हूँ स्वयं को,
पाने को वह सत्य पथ,
जो मनुजता की पहचान है,
मानव की को शान हैं,
अपना लिया है मैंने तुझे,
तेरे हर सत्य को,
कर धारण अंतस में,
चल दी हूँ,
मैं केवल सत्य राह,केवल सत्य राह।।