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Aishwarya Rai

Inspirational

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Aishwarya Rai

Inspirational

उलझन

उलझन

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शोर इतना था अंदर की उलझन बढ़ती गयी,

रास्ते इतने थे सामने मेरे की पैर डगमगा गए। 


पूछ बैठी खुदा से यह शोर कैसा ?


हँसा होगा मुझपर फिर बोला, 

चाहते तेरी तो कुछ और थी, फिर तू चली किस ओर है ?

जब पूछा मैंने यह उलझनों का दौर कब होगा ख़तम ? 

बोला, मंज़िल तेरी कुछ और थी, 

पर तेरा रास्ता अब कुछ 

और है।


जब पूछा मैंने रास्ता कौन सा होगा सही ?

बोला, तुझे खुला आसमान, 

चाँद- तारे चाहिये थे 

पर बंद दीवारों को सजाने पर अब तेरा जोर है।


सपने देखे थे खुली फ़िज़ाओं के तूने पर बंद,

दरवाजों को खोलने के बजाये तू अब मुड़ी किस ओर है ?

तेरे तो अटल इरादे हुआ करते थे, 

अब डगमगाते क्यूँ है पैर तेरे ?


बातें गोल थी मगर अब समझ आयी, 

इरादे बुलंद और मजबूत किए। 

अब रास्ता सामने है और मंज़िल दिखती नज़र आ रही, 

बस उसे हासिल करने का इंतजार है।



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