झूठ का प्रचार और सच का तिरस्कार
झूठ का प्रचार और सच का तिरस्कार
सच को हक नहीं, कि बोले वो
और झूठ खूब चिल्लाएगा।
अपराधी बैठा घर पर अब,
सज्जन को दूर भगाएगा।।
है कहाँ सत्य कुछ पता नहीं,
न जाने कब वो आएगा।
कब जागेगी दुनियाँ सारी,
कब धरती को राम जगाएगा।।
कर्तव्य निभाए यदि कोई,
षड्यंत्री खेल दिखाएगा।
आगे बढ़ना चाहे जो वह,
जग उसको वही दबाएगा।।
इतनी ईर्ष्या मत पाल कभी,
इस अग्नि में जल जाएगा।
जीने की आशा लिए हुए,
एक दिन घुटके मर जाएगा।।
मेरी कविता में एक प्रश्न छिपा है....
यदि उसका उत्तर आपको ज्ञात हो....
तो अवश्य दें
क्यों झूठ का प्रचार हुआ,
और सच का तिरस्कार हुआ।
दानव हँसते है.. खड़े-खड़े
और जो देव बोले भी..तो संहार हुआ।।
