शायरी
शायरी
हुजूम ने निकाला, नए लोग भी मिले फिर
पतझड़ कभी जो आया, सावन में हम खिले फिर
मंज़र ने कोशिशें कि, न रौशनी मिले फिर
पर आँधियाँ भी हारी, चिराग ही जले फिर।
हुजूम ने निकाला, नए लोग भी मिले फिर
पतझड़ कभी जो आया, सावन में हम खिले फिर
मंज़र ने कोशिशें कि, न रौशनी मिले फिर
पर आँधियाँ भी हारी, चिराग ही जले फिर।