शायरी (हास्य)
शायरी (हास्य)
हम लगाते रहे अश्ज़ार, किसी और के तवक्कल में
वो साए में उसके बैठें, पर किसी और के बगल में।
हम लगाते रहे अश्ज़ार, किसी और के तवक्कल में
वो साए में उसके बैठें, पर किसी और के बगल में।