।। रंग और राजनीति ।।
।। रंग और राजनीति ।।
इस होली तो देखो रे भाई,
मचा बड़ा हुड़दंग,
रंग ही खुद में लड़ बैठे,
कैसा ये अनूप प्रसंग
लाल कहे में समाजवाद हूँ ,
है मेरी टोपी ऊपर,
नीला हाथी पर चढ़ बोला,
मैं हूँ तुम से सुपर
रंग केसरिया इठला कर बोला,
है झूठी तुम्हारी शान,
इस होली तो तुम सब से ऊपर,
बस मेरा ही मान,
रंग श्वेत कुछ उखड़ा सा,
कुछ रूठा कुम्हलाया सा,
इस होली इस पर है छाया,
कॉंग्रेस का साया सा,
रंग बसंती पीला बस,
कहता फिरता आप ही आप,
इसने भी इस होली छोड़ी ,
अमिट है बन्धु अपनी छाप,
राजनीति जब पहुंची रंगों तक तब ,
रंग काले ने भी कर दी चतुराई,
विरोध प्रकट तुम सब मुझ से कर लो
उसने सब रंगों से है ये गुहार लगाई,
रंग काला हममें जो मिला तो,
खुद अपना रंग हम खो देंगे
ये जो हुआ हम पर हावी तो,
अपने ढंग सब खो देंगे,
सोच सटीक जैसे ही भाई,
सब रंगों के दिल पर छाई,
छोड़ वैमनस्य राजनीति फिर,
मिले गले पाटी सब खाई,
एक थाली में सब सज कर हैं बैठे,
एक दूजे का ये उत्साह बढ़ाते हैं ,
फिर से फाल्गुन में है अपना देश रंगा,
सब रंग मिल होली का पर्व मनाते हैं
सब रंग मिल होली का पर्व मनाते हैं ।।