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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Inspirational

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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Inspirational

शेर सिंहगढ़

शेर सिंहगढ़

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कथा है सोलह सौ सत्तर की, 

मुगलों को दिए गए प्रति उत्तर की, 

एक वीर मराठा गरज़ा था, 

मुगलों पर कहर बन बरपा था! 


शिव साम्राज्य का ताना था, 

राजे ने अपना माना था, 

मालसुरे की गर्जन का लोहा, 

सिंहनाद सम माना था! 


कोंढाना का विशाल दुर्ग अति, 

उदयभान मुगलों का दुर्गपति, 

आदिलशाह ने छल से जीता था, 

माता जीजा का छलनी सीना था! 


माँ की इच्छा सर आँखों पर मानी थी, 

मराठा वीरों ने कोंढाना वापस लाने की ठानी थी, 

कोली सरदार सूरमा ताना जी, 

राजे शिवा का विश्वास था ताना जी! 


बचपन से मित्रता निभाई थी, 

अब कर्ज चुकाने की बारी थी, 

बेटे रायबा की शादी थी, 

पर ताना ने गढ़ लाने की ठानी थी! 


तलवार सिंह की लहराई, 

महादेव उदघोष सुनाई, 

यशवंती संग ताना ने तलवार चलाई, 

 शक्ति,युक्ति कौशल के आगे, 

उदयभान ने मुँह की खाई थी! 


मुट्ठी भर मराठे हथेली पर जान लिए, 

हज़ारों मुगलों के सर काट लिए, 

ताना के हाथों से गिरी ढाल जब, 

हाथों को ढाल बना लिए! 


वीर शिरोमणि ने आहुति देकर, 

भगवा ध्वज लहरा दिया, 

मराठा साम्राज्य को सिंह ने, 

सिंहगढ़ का उपहार दिया! 


जय जय हे मालसुरे बलिदानी, 

शूर वीर गौरव अभिमानी! 

युगों युगों भारत वर्ष कहेगा, 

सिंहगढ़ में अमर इक शेर रहेगा! 


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