मां
मां


आज फिर आँख
डब-डबा आईं
मन का पर्दा खिंचा,
जब मां आईं।
पकड़े मां का आँचल
कोई जब बचपन को
गुनगुनाता चलता है
मेरे हिस्से में
तस्वीर से उतर कर
बस उसी पल
मेरी माँ आई।
रिश्ते सादे थे,
कांच से साफ
ना कोई छल था
ना कोई कपट
सर से आँचल क्या उठा
धूप में मां
फिर याद आई।
लौटना मस्तूल को
रोज़, सुनाना फिर
दिन-भर की कथा
दुख को हरने
की व्यथा जब
खुद में जज्ब की
मां तुम बहुत याद आई।
आज फिर आँख
डब-डबा आईं
मन का पर्दा खींचा,
जब मां आईं।।