गुरु
गुरु


गुरु
जीवन को ,
जो उत्कृष्ट बनाता है
मिट्टी को जो छूकर ,
मूर्तिमान कर जाता है
बाँध क्षितिज रेखाओं में,
नये आयाम बनाता हैं
जीवन को जो
उत्कृष्ट बनाता है
ज्ञान को जो ,
विज्ञान तक ले जाता है
विद्या के दीप से ,
ज्ञान की जोत जलाता है
अंधविश्वास के समंदर को चीर,
नवीन तर्क के साहिल तक ले जाता है
मानवता की पहचान से ,
जो परमबह्म तक ले जाता है
सत्य -असत्य,
साकार को आकार कर जाता है
जीवन-मरण,
भेद-अभेद के भेद बताया हैं
वह प्रकाश -पुंज ,
ईश्वर के बाद गुरु कहलाता है।