आर-पार
आर-पार
उड़ना है ऊँचे आसमान में, ना सोच ये कल होगा,
क्योंकि शायद ही सोचने के लिए अगला पल होगा।
ना सोच कि जीत होगी या हार होगी,
कश्ती डूबेगी या दरिया के पार होगी।
जिसे बिछड़ना होगा, वो बिछड़ जाएगा बहार में,
जिसे साथ रहना होगा, वो साथ निभाएगा मझधार में।
मंज़िल मिलेगी या कठिनाइयों की बाढ़ होगी,
अब तो लड़ाई बस आर-पार होगी।
