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Arun Gode

Inspirational

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Arun Gode

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राजश्री साहू महराज

राजश्री साहू महराज

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जिजाउ और शाहजी थे स्वराज्य के शिल्पकार,

शिवाजी और संभाजी ने स्वराज्य को दिया आकार।

मनुवादि कर्मकांडीयों के षडयंत्र हुंये साकार,

असमय शिवाजी और संभाजी का करके अंतिमसंस्कार।


राजर्षी शाहू महाराज हुयें आक्रमक,गतिशिल व अग्रसर,

पुर्ण करना है पूर्वजों के आर्दश स्वराज्य का सपना साकार।

समाज में प्रस्थापित मृत कुप्रथाओं का करना था अंत,

इसलिए की रोटी- बेटी व्यवहार कि अपने घर से शुरुआत।


पहिला अंतर जातीय विवाह्र की शुरुआत,

अपने चचेरी बहन का रचाकर विवाह धंगर जमात।

मिटा दी सौ साल पहिले की मृत परिपाटी,

उच- निचता,जातीवादी धार्मिक सामाजिक रुढि।


कोल्हापुर और इंदौर संस्थानों का था खयाल,

रखनी थी ऐसे सौ अंतरजातीय विवाह की मिसाल।

लेकिन कर पायें पच्चीस विवाह अपने जीवन काल,

लक्ष्य हासिल करने का प्रकृतिने किया कार्यक्रम विफल।


पिछडे और अति- पिछडे की हिस्सेदारी करनी थी सुनिश्चित ,

अपने संस्थान में की पचास प्रतिशत नौकरियां आरक्षित।

सभी के लिए प्राथमिक शीक्षा कि अनिवार्य,

नियम उल्घन के लिए प्रजा को अर्थदंड।


स्वर्ण और शुद्र –अतिशुद्र के लिए एक ही कक्षा,

बिना भेदभव से कोल्हापुर संस्थान में शुरु की शिक्षा।

कर्मकांडी हो जाए समानता के लिए दक्ष,

शिक्षाग्रहन में शुद्र –अतिशुद्र ना बने स्वर्ण के भक्ष।


स्त्री शीक्षा के लिए स्त्रीयों को किया प्रोत्साहित,

क्योंकि स्त्री शीक्षा में ही है सभ्य समाज का हित।

छात्रों के लिए बनाये जगह-जगह छात्रावास,

छात्रों की सुविधाओं के लिए प्रयोजन खास।


अपने संस्थान में बनायें कई समाज सुधार कानुन,

जैसे विधवा पुनर्विवाह, विवाह विच्छेद राशी,

देवदासी प्रतिबंध,स्त्री अत्याचार और स्त्री संरक्षण।

राजर्षी शाहू महाराज थे रोजगार हमी योजना के प्रनेता,

मजदूरों के सभी समस्या के थे ग्याता।


जगह –जगह बनायें मजदूर आश्रयस्थान,

महिला मजदूरों के लिए पालनास्थान।

देश में सदी के भयंकर अंकाल के दौरान,

खुले किए पशुधन के लिए संस्थानिक सरकारी वन।


शुरु कि संस्थान में रोजगार गारंटी योजना कानुन,

ताकि मजदूरों का शुरु रहे आय का साधन।

मैहसुर राज्य से खरिदकर किया अनाज का भंडारण,

ताकि सभी मजदूरों को मिले पेटभर भोजन।


अन्य संस्थानो में मर रहे थे भूक से मजदूर,

संस्थान में सुखे की चपेट से दूर थे मजदूर।

ऐसे कार्यो से साहू बने प्रजा के नायक,

मनुवादी नेता के लिए राजर्षी बने खलनायक।


लेकिन वे थे समय के आगे के नायक

सौ साल पहिले उन्होने किया कार्य महान,

आरक्षण, अंतरजातीय विवाह, अस्पृश्यता निर्मुलन।

बाल विवाह और सभी को प्राथमिक शीक्षाप्रयोजन,

कोल्हापुर संस्थान में बनाकर सरकारी कानुन।


उनके कार्य का आज नही हो रहा है सही मुल्याकन,

दुःखदायक है, ऐसे समाज सुधार के कार्य का अवमूल्यन।

किसी और के नाम से हो रहा है नामांकन,

बहुजनों को छेडना होगा गलत नामांकन लिए आनदोलन।


कोई उनसे सीके प्रतिभा का कैसे करना है गुनगाण,

जो खुद गये भीम का करने मुंबई में सम्मान।

राजर्षी के सारे कार्य थे जनमान्य,

लेकिन कुछ थे स्वयमंभू लोकमान्य।

जीन्हे थे ये जनहित कार्य अमान्य,


क्या यही है सच्चे लोकमान्य की पहचान ?

राजर्षी शाहू महाराज और महर्षि विठ्ठ्ल रामजी शिंदे,

भीम्रराव आंबेडकर और महात्मा फुले,

सभी थे अपने समय के समाज सुधारक महान।


भीम्रराव आंबेडकर और महात्मा फुले,

को मिला दलित और माली समाज का समर्थन।

लेकिन राजर्षी शाहू महाराज और महर्षि विठ्ठ्ल रामजी शिंदे,

बहुजन मराठा समाजने नहीं किया उनका समर्थन और सम्मान।


देश के आजादी आंदोलन से रहे वो कोसों दूर,

क्योंकि ये स्वर्ण के आजादि कि थी मात्र जंग।

अपने स्वार्थ के लिए चाहिए थे बहुजन उन्हें संग,

शाहुमहाराज कितने बडे दूरदृष्टीवाले थे इंसान।


बहुजन को हो रहा है अभी उसका ज्ञान,

देखकर देश के स्वर्ण हुकम्मरानों का चाल-चलन।

बहुजनों को आज भी लढनी पडति हर क्षण,

राजनैतिक, समाजिक आर्थिक असमानता की जंग।


स्वर्ण हुकम्मरानों का रोकना है बहुजनों के प्रति कुशासन,

शाहु विचारधारा का बहुजनों को करना पडेगा स्मरण।


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