काल के मुख से
काल के मुख से
अकाल का घोष हो
शव की आड़ से शिव का किलोल हो
चिताभूमि की राख से चैतन्य का अभिषेक हो
झूठ के शोध से सच का सहज बोध हो
तांडव के विदीर्ण से विनाश महारास में उत्तीर्ण हो
वैरभूमि के ध्वँस से प्रेम की सुवास हो
कर्कश के मौन से कोकिलकंठ का गान हो
महाप्रलय की रात्रि से महा सृजन का प्रभात हो
सृष्टि के समुद्र में अमरता का स्नान हो
अवगुणों के भाव से गुणों का आदान हो
अंधकार की गहराई से प्रकाश का प्रणाम हो
धरती के शोक से स्वर्ग का आवास हो
संघर्ष के सिरे से सफलता का आश्रय हो
असफलता की चिंता से सफलता का परिणाम हो
आग के आगे अदृश्य सूर्य का प्रकाश हो
हार के बाद विजय का उत्साह हो
संघर्ष के पथ पर सफलता का मिलन हो
अंत में, शक्ति के अंत से, अमरता का अभिमान हो।
