बोलो, सीताराम जय!
बोलो, सीताराम जय!
दस्यु, पुरोहित, सभी पूजते,
जय! जय! जय! श्रीराम जय!
जन्म-जन्म के पाप मिटेंगे,
बोलो, सीताराम जय।
शिला बनी नारी बोली,
“प्रभु, तुमने ही उद्धार किया,
अहल्या का रूप दिया
फिर मेरा जीवन धन्य हुआ।”
श्रीराम भक्त केवट बोला,
“भवसागर पार कराते हो,
मेरी नौका पार करो,
प्रभु, मुझपर भी करो कृपा।”
सुग्रीव जब संकट में था,
उसका भी उद्धार किया।
किष्किन्धा का भूप बनाकर,
समृद्धि, सम्मान दिया।
रावण ने तिरस्कार किया,
प्रभु की शरण में आया था।
रो-रोकर विभीषण अपनी
सारी व्यथा सुनाया था।
श्रीराम नाम की कुटी नहीं,
पर जल गयी लंका सोने की।
सीताराम का नाम जपो
जीवन में फिर कष्ट नहीं।
