ज़रा सोचो
ज़रा सोचो
क्या कभी आपने सोचा है
या महसूस किया है
आप अपने बच्चों को
अपने ही स्वरूप में
ढालना चाहते हो
अपने जैसा ही
घड़ना चाहते हो
पैसा कमाने की
मशीन बनाना चाहते हो।
आपका नाम रोशन
करने की बातें करते हो
क्यों?
अपने अहम् की
तुष्टि के लिए।
जो आप बनना चाहते थे
मां-बाप के
हस्तक्षेप से नहीं बन पाए।
कोई संगीतज्ञ बनना चाहता था
उसे गणितज्ञ बना दिया गया
कोई एक्टर बनना चाहता था
उसे इंजीनियर बनना पड़ा
कोई डॉक्टर बनना चाहता था
उसे दुकानदार बना दिया गया
कोई समाजसेवी बनना चाहता था
उसकी आजीविका की चिंता मां-बाप को सताने लगी
बेटियां पढ़ लिखकर
आत्मनिर्भर बनना चाहती थी उनकी शादियां कर दी गईं।
अनगिनत उदाहरण।
क्या आप अपने करियर से
प्रसन्न रहे?
नहीं न,
आप के बच्चे भला
कैसे प्रसन्न रहेंगे।
मेरी बात मानो,
बच्चों को जब लग जाएं पंख
उन्हें उड़ना सिखाऐं
उनके मार्ग दर्शक बनें
पर उनको अपने रास्ते
स्वयं चुनने का अवसर दें।
हो सकता है
उन रास्तों पर चल
वे प्रसन्न और सफल हो सकें।
बच्चे भी तो
हाथों और माथे की लकीरें
लिखवा कर लाए हैं।
फूल खिलाए नहीं जाते
फूल खिलते हैं।
झरने बहाए नहीं जाते
झरने बहते हैं।
