मैं समय हूँ (Prompt-4)
मैं समय हूँ (Prompt-4)
जिसने भी मंज़िल पायी है इस जहाँ में
शायद वक़्त की बहुत कद्र की होगी उसने
वरना सफल होने की चाह रखने वालों की
यहाँ कोई कमी नहीं
बहुत ही सहज, बहुत ही सरल स्वभाव इसका
करता नहीं गुमान कभी खुद पर
वक्त कभी थमता नहीं
वक्त कभी रुकता नहीं
न कभी शुरू हुआ, न कभी ख़त्म होगा
यात्रा रहेगी इसकी अनवरत
अनंतकाल तक चलता रहेगा
चाहकर भी इसकी गति की रफ़्तार को
कोई थाम न सका, कोई रोक न सका
न कोई लें पाया अब तक इसकी थाह
ना कोई स्वरुप, ना कोई रंग इसका
न कोई आकार, न कोई रूप
अपने कर्मपथ पर ये कभी डिगता नहीं
होकर अदिग अविरल चलता रहता है
अगर इसे थामो तो ऐसे फिसल जाता है
जैसे मुट्ठी से रेत
जिससे होती है इसकी यारी
कामयाबी चूमती है चरण उसके
ये करता नहीं कभी इंतज़ार किसीका
न कभी इतराता है अपनी शान पर
रात का अँधेरा हो, दिन का उजाला हो
आंधी हो या तूफ़ान, या हो बवंडर प्रलय का
निकल लेता है चुपके से मुस्कुराते हुए
चला है जो संग इसके मिलाकर क़दम
जिंदगी में उसके न मायूसी न कोई ग़म!