"धूप का साया"
"धूप का साया"
जो आदमी धूप से बचता है
वो न फलता है,न फूलता है
जो धूप के साये में पलता है
वो ही आदमी आगे बढ़ता है
जो पौधा छांव में बड़ा होता है
उसका कभी विकास न होता है
जो शख्स सँघर्ष से जुदा होता है
वो अपनी जिंदगी में सदा रोता है
जो आदमी दुःख से लड़ता है
वो ही जिंदगी में सुख पाता है
जो धूप के साये में पलता है
वो ही आदमी आगे बढ़ता है
जो आदमी शूलों से बचता है
वो कभी फूल नही बनता है
जो कठिनाइयों से लड़ता है
वो
आदमी इतिहास रचता है
जो सँघर्ष में यकीन रखता है
वो ही जुगनू जैसा चमकता है
जो समस्या-दौर से गुजरता है
वो दुःख को अच्छा समझता है
वो सफलता की सीढ़ी चढ़ता है
जो असफलताओ से लड़ता है
जो धूप के साये में पलता है
वो ही आदमी आगे बढ़ता है
सँघर्ष से तू न घबरा साखी
आग में तप भूल सब,बाकी
जो सँघर्ष अग्नि में तपता है,
वो यहां खरा कुंदन बनता है
जो धूप के साये में पलता है
वो ही आदमी आगे बढ़ता है।