कण कण में कृष्णा
कण कण में कृष्णा
पहाड़ पर जब चमकी धूप तेज,
बारिश की बूँदों ने उसे फिर खूब भिगोया।
हल्की जो पकड़ हुई किसी कोने पर,
टूट टूट कर पत्थर बरसाया।
उन पत्थरों को हवा के बहाव ने,
फिर छोटी छोटी धूल बनाया।
उड़ी, उड़ चली वो ,
दूर किसी गांव मे,
कुम्हार के हाथो जब लगी वो,
तो फिर उसी पानी से भिगोया।
हवा से सुखाया,
सजा दिया मोतिया से,
धोती पहनाया ,सर पर मुकुट लगा के,
कृष्ण के हाथो मे बांसुरी पकड़ाया।
जिसे कहते थे अब तक वो देखो पहाड़ है,
उस पहाड़ का आज भगवान बनाया।
