"निंदिया से जागी बहार".
"निंदिया से जागी बहार".
सुबह हुई प्रकृति ने आंख खोली,
पंछी बोल रहे है मीठी बोली।
बागों में रंग बिरंगी फूल खिले,
भंवरे आकर उसके गले मिले।
लगता है जैसे निंदिया से जागी बहार!
साथ में लाई वो खुशियों की बौछार।
कोयल गा रही है खुश होकर मल्हार,
लगता है जैसे धरती पे आया कोई त्योहार।
पहाड़ का सीना फाड़कर सूरज ने ली अंगड़ाई,
धरती पर चारों और सूरज की रोशनी छाई।
प्रकृति का सुंदर रूप देख के मन हुआ प्रफुल्लित,
मनोहर फूलो की खुशबू से मन हुआ हर्षित।