रिश्ते
रिश्ते
चारो तरफ रिश्तों का मेला
पर अंदर से हर इंसान अकेला,
सुख में साथ निभाता मेला
दुख में पंछी बन उड़ जाता मेला
ऐसा आज का मेला ठेला
हर किसी ने जिसमें बस दर्द है झेला
चारो तरफ रिश्तों का मेला
पर हर इंसान फिर भी अकेला,
खुशियां बांट लेता यह मेला
दर्द में भाग लेता यह मेला
अब तक समझ न आया
रिश्तों का यह मेला ठेला
ग़म में तन्हा क्यों छोड़ जाता यह रेला
रिश्तों के बंधन ढीले पड़ गए
इसकी खुशबू लगता हवा में उड़ गए
कभी सुख तो कभी दुख देते है यह रिश्ते
आंखे कभी नम तो कभी खुशियो से भर देते है रिश्ते
ख़ैर यह तो है रिश्तों की बाते
कभी मेला तो कभी झमेला है
कोई खुश तो कोई दुनिया में अकेला है
कोई दुनिया में अकेला है।।