मुझे जवाब चाहीये
मुझे जवाब चाहीये
मुझे जवाब चाहीये
चाहीये जवाब अपने आपसे
चाहीये जवाब इस सम्पूर्ण संसारसे
और क्रिष्ण भी तुमसे
पता नहीं ऐसा क्यो हो रहा है, कि इतने वर्षोतक
जिसने अपने विचारो को था सँभाला
वह 'मै' जिंदगीके इस महत्वपुर्ण पड़़ाव पर कैसे डगमगा गया ?
मेरे विचार अब मेरे काबू में नहींं,
करना चाहता नियंत्रण उनपे पर क्या करुँ ?
ये मन भी तो मेरे वश में नहीं
एक गिर गया तो दुसरा थोड़़ी ना रुकनेवाला था
अपनेही धुँद में मेरा मन भी कही चल पड़ा
पर हे क्रिष्ण जवाब मै चाहता हू तुझसे एक
जीवनभर नहीं ख्वाईशे मेरी अनेक
बताओ मुझे अवस्था यह युवान कि मेरी
फिर कैसी ये दुविधा सारी
सुंदर कन्याओं पर मन मेरा मोहित होने लगा
काँबू में करने जावो उसे तो उसने मुझे ही क्यों अलग कर लिया ?
फिर क्यो कहाँ तुमने ऐसा कि,
आन्तरीक कुविचार भी है अधर्म जैसा ?
हे मेरे इष्ट जवाब तुम दो मुझे
वीर्य को एकत्रित करके ब्रम्हचर्य का पाठ तुमने है पढाया
फिर इस कलयुग में महिलाओं को
कौमारवस्था में ही क्यो गर्भधारण करवाया ?
कहोगे तुम अब ये सब कर्मफल है
पर मैं ही नहीं मानता ये जब
तो तुम कैसे दे सकते उन्हे इतनी कठोर सजा ?
वैसे कहने का तो मुझे भी कुछ अधिकार नहीं तुम्हें
क्योंकि तुम्हारे दिये हुये रास्ते पर चलने में मै भी असमर्थ रहा
नहींं कर सका वश में मैं अपने मन को
और क्षमा मै माँगता हूँ तुझसे अगर बुरा तुझे लगा हो तो।