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आ. वि. कामिरे

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आ. वि. कामिरे

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शिवरात्री के रात को जागरण ही भायेगी

शिवरात्री के रात को जागरण ही भायेगी

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देखो आया उत्सव

फिर यह महाशिवरात्री का

कहानियां तो हैं भरपूर

फिर भी हम सबके समाधान का

सुवर्ण दिन से होती शुरुवात इसकी

महादेव के भक्तो कि

तो आस है दर्शन कि

होके तयार, स्वच्छ जल्दी

मन लिये इच्छा मिलन कि

चालते भक्त मंदिर कि और सभी

भीड मै तो खो देते खुदको भी

वजह से उपवास के

रहता पेट दिनभर खाली

और स्वरूप महादेव का

ना सोने दे चैन से भली

समय बीता वक्त कुछ

मिला दर्शन अचूक

स्वरूप है ऐसा देखा

करपूर के समान वर्ण गौर

पुरे संसार मे ना किसका होगा

दिव्या तेज है,

है निळा मंडल आभा

हाथ मै त्रिशूल

और अंग को पत्तोसे ढका

पशुपतीनाथ वह गले मै सर्प उनकी

स्वरूप यह केलीये देखणे

जिनका जनम लेणे पडते कयी

शरीर पे भस्म और शाम्शान निवासी

आज बना रहे हमें

अपने स्वरूप के साक्षी

भक्तो मे रही उमड लहर ख़ुशी कि

मन मे देख स्वरूप महादेव का

निंद आज ना किसीको आयेगी

शिवरात्री के रात को

जागरण ही सबको भायेगी।


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