Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Vipin kumar Pandey G

Tragedy

5.0  

Vipin kumar Pandey G

Tragedy

जब रोती है माँ तो शिवालय....

जब रोती है माँ तो शिवालय....

3 mins
521


ज़मीन से फलक तक का मुकाम लिख दिया।

उठा कर कलम कागज़ पर माँ नाम लिख दिया।।

और कोई गुनाह नहीं किया मैंने बस दो - चार

शेर ही पढ़े थे,

लोगों ने अमन नाम के आगे बदनाम लिख दिया।।


सीता की तरह खुद को अग्नि परीक्षा में उतारना

चाहूँगा।

औरों को दरिंदा कहने से पहले,

अपने अंदर का दरिंदा मारना चाहूँगा।।


निर्भया मर गई या मार दी गई,

इस बात पर कोई विवाद नहीं है।

लड़कियों को मारने के लिए दरिंदे लाखों है,

मगर चार दरिंदों के लिए एक जल्लाद नहीं है।।


जितना खून तू अपनी रगों में लेकर चलता है,

उतना खून तो वो चार दिन में बहा देती है।

इसी मिट्टी की ही बनी है वो भी,

बस कभी - कभी अपना नाम माँ बता देती है।


रेप से पीड़ित, वो अपनी आखरी सांसें ले रही थी।

और उस फिकर इस बात की नहीं की जिंदा

बचेगी या मर जाएगी।

बस किसी तरह मुद्दा टल जाए वरना

बाप की इज़्ज़्त उछल जाएगी।।


बेजुबान क्यों है

इतनी भीड़ में भी उसने उसके जिस्म को

छूने की कोशिश की।

खुद ही खुद की नज़रों में गिरने की साज़िश की।


उसने बड़ी आसानी से अपनी उंगलियों को

उसके जिस्म से लगाया। 

वो बंदा इतनी आँखों में भी थोड़ा सा ना शरमाया।


की वो मासूम सी बच्ची थोड़ा सहम सी गई थी।

बोलना तो दूर आवाज़ गले में ठहर ही गई थी।


ऐसे हालात में उसे अपने भाई की याद आई।

की सोचा क्यों नहीं ना मैं उसी के साथ आई।


वो चीखना चाहती थी, वो चिल्लाना चाहती थी।

इस भीड़ में हर एक चेहरे को नींद से

जगाना चाहती थी।

की कोई तो इस शख्स को रोक लो,

क्या मैं तुम्हारी बेटी जैसी नहीं हूं,

बस यही जताना चाहती थी।।


बच्ची की खामोशी को वो उसे उसकी

रजामंदी समझ बढ़ा था।

और खुद तो था वो, उसे भी गंदी

समझ बढ़ा था।


पता नहीं कहां कहां उसके हाथ

उसके जिस्म पर टिक रहे थे।

न जाने क्यों उसे उस मासूम के आँसू

नहीं दिख रहे थे।


वो कुछ बोल भी ना पाई और उस पर

इतना अत्याचार हो गया।

रोज कि तरह आज इतनी भीड़ में भी

एक और बलात्कार हो गया।


इंसानियत से यकीन उठ गया है मेरा,

पिछले कुछ दिनों में ऐसा व्यवहार देखा है।

हर दूसरा इंसान दरिंदा लगता है,

जब से निर्भया का बलात्कार देखा है।।


माँ कुछ ऐसा तू होने मत देना।


मेरे मरने के बाद किसी को रोने मत देना।

माँ कुछ ऐसा तू होने मत देना।।


भाई की कलाई इस बार खाली ही रहेगी।

उसके माथे पर बस टिके की लाली ही रहेगी।

उस लाली को कभी तू धोने मत देना।

माँ कुछ ऐसा तू होने मत देना।।


पापा पछताए होंगे सोच कर, कुछ कर नहीं पाया।

अपने बाप होने का फ़र्ज़ अदा कर नहीं पाया।

पापा को इस ग़म में खोने मत देना।

माँ कुछ ऐसा तू होने मत देना।।


लोगों ने सड़कों पर धरने दिए तो होंगे।

जजों ने कोर्टो में फैसले किए तो होंगे।

पर अपनी उम्मीदों को कभी सोने मत देना।

माँ कुछ ऐसा तू होने मत देना।।


लाल रंग के छीटें, जो सने गए थे एक दामन पर,

ये जमाना वो दामन छुपा रहा था।

जो - जो कपड़े फटे थे, उस चीर हरण में,

एक बाप वो कपड़े जला रहा था।

और बात जो थोड़ी बढ़ी तो बात का चेहरा ही

बदल दिया जमाने ने,

दोषी को भोला और भोले को दोषी बता रहा था।


राम नमाज़ पढ़े,

और मैं अलाह से आरती कराना चाहता हूं।

जिस तरह औरतें डरती है बलात्कारों से,

उसी तरह मैं हर नामर्द को डराना चाहता हूं।



Poet written by Aman jangara


Published by Vipin Kumar pandey G


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy