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Sushma Singh

Tragedy

4.8  

Sushma Singh

Tragedy

मानवता ही धर्म है...

मानवता ही धर्म है...

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       कोई दरवाज़े को भी पीट रहा था और घंटी भी लगातार बजाये जा रहा था,खीजते हुए मैं उठा सोचा रात के नौ बजे कौन हो सकता है !! क्यूँ कि मैं अकेला रहता हूँ, पांच साल पहले पत्नी का देहांत हो चुका था,एक बेटा है उसको मैंने हॉस्टल में भेज दिया, क्यूँ कि मै अकेले उसकी देखभाल नहीं कर सकता था...l सब कहते रहे मगर मैंने दूसरी शादी नहीं की जब कि अभी मेरी उम्र मात्र सैतीस साल है,सुमेधा के जाने के बाद मेरा मन ही नहीं किया किसी और को अपनी ज़िन्दगी में शामिल करने का l

                       खैर जाने दीजिये इन बातों को, मैंने उठकर दरवाज़ा खोला...सामने एक छब्बीस साल के आस पास की लड़की या महिला जो समझिये क्यूंकि उसके सीने से एक छः सात माह का बच्चा चिपका हुआ था,लड़की की हालत देखकर कहा जा सकता था कि उसने दो दिन से ढंग से खाना नहीं खाया होगा....बच्चे की भी हालत बहुत अच्छी नहीं लग रही थी, मुझे देखते ही रोते हुए बोली भाई जी दो दिन से खाना नहीं खाया है,बच्चे को दूध भी नहीं पिलाया है...पानी पी कर पेट भर रहे है,हम दूर गाँव से काम ढूढ़ने निकले थे पति रास्ते में बीमार पड़ा और हमारे पास जो भी पैसे थे वो हस्पताल वालों ने ले लिया मगर फिर भी पति को बचा नहीं पाए,उनका क्रियाकर्म भी नहीं कर पाए वही छोड़कर हमें आना पड़ा इस शहर में lना हम किसी को जानते है ना ही अनजान को कोई काम देने को तैयार है,भाई जी आप जो भी काम कहेंगे वो करेंगें बस हमें दो समय का भोजन दे दीजियेगा...l

                   उसकी बातें सुनते हुए मेरे दिमाग़ में कोई शैतान धर कर गया पता नहीं मुझे क्या हुआ जीवन में पहली बार मेरी सोच गन्दी हो गई,उस लड़की को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा हाँ !क्यूँ नहीं खाना तो मिल जायेगा बस उसके बदले में तुम मुझे ख़ुश कर देना वो क्या है ना मेरी बीबी को दुनिया छोड़े कई साल हो गए

तो मेरे तन की, पूरा बोला भी नहीं था कि एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा,बस !मैंने आपको भाई जी बोला और तुम हमको ऐसे वैसे समझ कर मेरा सौदा कर रहे हो ,शर्म आ रही है मुझे अपने आप पर अगर मुझे यही काम करके पैसा कमाना होता तो मै दो दिन से भूखी ना होती...l मर जाउंगी मगर खुद को नहीं बेचूँगी,तुम जैसे लोग इंसानियत के नाम पर कलंक हो !!

           वो ये बोलकर चली गई...मगर मेरा शैतान दिमाग़ उस समय इस बात को मानने को तैयार नहीं हुआ कि मैंने कुछ गलत किया शायद उस समय मै नशे में भी था...lमै आराम से सो गया...सुबह जब उठा तो मुझे बाहर कुछ शोर सुनाई दिया....मै बाहर निकला ये जानने के लिए कि क्या हुआ है ? घर से बस कुछ दूर भीड़ दिखी उत्सुकता वश मै भी देखने चला गया,वहां का दृश्य देखते ही मेरी साँस ही अटक गई...रात वाली औरत अपने बच्चे के साथ मरी पड़ी थी...मै वहां इक पल भी ठहर नहीं पाया...मेरा नशा उतर चुका था और मैने खुद को उसकी मौत का ज़िम्मेदार मान लिया था...l

रह रह कर उस लड़की की बात मेरे ज़हन मे गूंज रही थी कि "तुम इंसानियत के नाम पर कलंक हो...l"

                  एक पल में मै अपने माँ बाप के दिये संस्कार को भूल गया जो मुझे रात दिन बताते थे कि बेटा "मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है" कभी भी किसी की मदद स्वार्थ के वशीभूत होकर मत करना...और मैंने इतना बड़ा पाप कर डाला...मेरे इस गुनाह की कोई माफ़ी नहीं थी...l भगवान भी मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा...मै इस आग में उम्र भर जलता रहूँगा.... l

यही मेरी सजा है....आप क्या कहते है !!!"

                                         


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