STORYMIRROR

Sushma Singh_24

Abstract

4  

Sushma Singh_24

Abstract

अनुत्तरित प्रश्न

अनुत्तरित प्रश्न

1 min
104

मेरी बेटी मुझसे बोली... 

माँ ! मैं हूँ तेरी परछाई 

फिर क्यूँ कहते है लोग? 

बेटी होती है पराई l

        

उसकी भोली बातें सुन... 

मेरी आँख भर आई, 

उसको कैसे समझाऊं...     

जो खुद ना समझ पाई l


तुम्हें पाकर मैंने जीवन की... 

सबसे बड़ी खुशी है पाई l

तुम मे मुझे अपना ही, 

अक्स देता है दिखाई l

  

पर दिल ना भी माने तो...

फिर भी यही है सच्चाई 

पता नहीं किसने ऐसी 

रीति है बनाई !

   

कोई भी बेटी चाहकर भी 

अपने माँ बाप के लिए... 

कुछ ना कर पाई... 

ये सोच मेरी आँख भर आई... 

मैं भी कहाँ अपने माँ के पास 

रह पाई...!!!!

            

       

   


 


             



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract