अनुत्तरित प्रश्न
अनुत्तरित प्रश्न


मेरी बेटी मुझसे बोली...
माँ ! मैं हूँ तेरी परछाई
फिर क्यूँ कहते है लोग?
बेटी होती है पराई l
उसकी भोली बातें सुन...
मेरी आँख भर आई,
उसको कैसे समझाऊं...
जो खुद ना समझ पाई l
तुम्हें पाकर मैंने जीवन की...
सबसे बड़ी खुशी है पाई l
तुम मे मुझे अपना ही,
अक्स देता है दिखाई l
पर दिल ना भी माने तो...
फिर भी यही है सच्चाई
पता नहीं किसने ऐसी
रीति है बनाई !
कोई भी बेटी चाहकर भी
अपने माँ बाप के लिए...
कुछ ना कर पाई...
ये सोच मेरी आँख भर आई...
मैं भी कहाँ अपने माँ के पास
रह पाई...!!!!