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Rashmi Jain

Tragedy

4  

Rashmi Jain

Tragedy

भूख

भूख

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तेरी इमारत से सटी गली में 

आज़ भी एक भूखा बच्चा रोता है 

रो रोकर भूखे पेट ही सोता है 

कुछ कहता नहीं 

ना ही दर्द अपने ज़ाहिर करता है 

बस पलकें मूँद 

जो मिल जाए 

तेरा बचा खुचा वो खा लेता है 


कहता है 

तुम खा लो भर पेट 

मन ना करे तो छोड़ दो प्लेट 

मैं उस में से ही चख लूँगा 

रूखा सूखा जो भी मिले 

उसे प्रसाद समझ रख लूँगा 


क्योंकि 

मुझे भूख नहीं है 

या यूँ कहूँ खाने की आदत ही नहीं है 

आज भी 

तेरी इमारत से सटी गली में 

एक भूखा बच्चा रोता है 


अज़ब ये संसार की रीत देखो 

ऊपर वाले का रचित ये खेल देखो 

एक ही दुनिया में ये कैसा भेदभाव देखो 

कैसी ये विडम्बना है 

एक तरफ़ है आसमान को

छूती ऊँची ऊँची इमारतें 

दूसरी ओर वीरान सड़कों

पर हैं ये बेबस जानें रोती 


एक तरफ़ कोई मजबूरन ही

फ़ल मूल खाता है 

दिल ना करे तो कूड़ेदान में

आसानी से डाल आता है 

दूसरी तरफ़ रोता बिलखता

एक मासूम खाने को तरसता है 


मज़बूरी में भूखे प्यासे ही सोता है 

पर लब से कुछ ना कहता है 

कंकाल सा शशीर 

बेज़ान सी नन्ही ज़ान 


आँखें करती हैं बयां 

इसके मन का हाल 

पूछती हैं लाखों सवाल 

क्यूँ आज़ भी 

तेरी इमारत से सटी गली में 

एक भूखा बच्चा रोता है 


तुझे पकवान भी है ना भाते 

वो दो वक़्त की रोटी पाने

को रोज़ रोज़ ही मरता है 

उतनी बड़ी झोपड़ भी नहीं उसकी 

जितनी लम्बी तेरी गाड़ी है 

गाड़ी में जब भी तू बाजू से निकलता है 


वो तेरे बड़े से शीशे में अपनी

खाली खोली को तकता है 

जहाँ मुट्ठी भर चावल भी

नसीब मुश्क़िल से होता है 

कैसी ये मज़बूरी है 

क्यूँ ये सीनाज़ोरी है 


क्या पैसा इतना ज़रूरी है 

हाँ शायद 

क्योंकि 

आज भी 

तेरी इमारत से सटी गली में 

एक भूखा बच्चा रोता है 



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