उड़ान
उड़ान
वो देखो शिकारी आया
संग अपने है धनुष बाण लाया
डोरी खिंची तीर चलाया
मेरे पंखों को है निशाना बनाया
निर्जीव सी काया हुई लहूलुहान ,
गिरी धम से धरती की कोख में,
भेदा मेरे हर अंग को
पर मेरी जिद को तोड़ ना पाया ।
मिट्टी की मरहम लगा
एक लम्बी साँस भर आस की
फिर आकाश को निहारा
काश की थी ना कोई गुंजाइश
टूटे पंखों को लपेट ,
ली फिर एक उड़ान ख़ुद को समेट।
देखो वो शिकारी बाज़ ना आया
जाल बिछा मुझे फिर क़ैद करने आया
पिंजरे में मैं रहती कैसे ?
बहती हवा हूँ ,
मुझे बाँध पाता कैसे ?
यह देख शिकारी हुआ हैरान ,
सोच पड़ा
हर बार कैसे हुआ वो नाक़ाम ।
फिर एक दिन आया
किया एक आख़री फ़ैसला
तन से अलग कर दिया उसने सर मेरा
मुझ पर कर एक अंतिम बार
क्योंकि उसे क़बूल ना थी अपनी हार ।
पर नादान था वो
ना समझ सका
ना भाँप सका
ना माप सका
बिन पंखों वाले कोशिशों की उड़ान ,
मेरी ख़्वाहिशों की ऊँची उड़ान,
कैसे रोकेगा अब मेरी रूह की उड़ान ,
फिर लौट आउंगी भरने उंची उड़ान।
किसी ने ख़ूब कहा है,
मेरी उड़ान की पहुँच देखनी हो तो
आसमान को कह दो
थोड़ा और उँचा उठ जाए ,
पर मैं तो कहूँगी ,
मेरी उड़ान की पहुँच देखनी हो तो
आसमान को कह दो रास्ते से ही हट जाए
क्योंकि ,
अब ना मैं मानूँगी
ना रुकूँगी,
ना झुकूँगी ,
ना थकूँगी ,
ना हारूँगी ,,
ये मैं नहीं
आज़ सर पर चढ़
ये है मेरा जुनून बोला ,
आज़ सारे ख़्वाहिशों की पोटली खोला
बस उड़ लेने दे आज जी भर,
कल को है किसने देखा।