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SMRITI SHIKHHA

Tragedy Inspirational

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SMRITI SHIKHHA

Tragedy Inspirational

मेरी प्यारी भोली मां ।

मेरी प्यारी भोली मां ।

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मां मेरी है जननी है मेरी दुनिया का सबसे ज़रूरी आधा हिस्सा

जिनकी ले नहीं सकता कोई इस दुनिया में चाहे हो वो जितना भी बड़ा 

हूं मैं बड़ी किस्मत वाली जो मिली है मुझे मेरी मां जो रहती है मेरे साथ जन्म से लेकर आज तक 

बस हूं मैं कुछ समय की दूरी में जब चाहूं चले जाने और मिल आऊं मैं उनसे हैं मेरी इतनी प्यारी 

की रहा ना जाए मुझे बिना उनको देखे ज़्यादा दिन आता उनका मुझे बहुत याद है

हर वक्त हर पल हर जगह जब भी होती मैं उनसे दूर हूं 

करता है हर वक्त मन रहने को उनके साथ ताकि रहे हैं वो हमेशा मेरे आंखों के सामने

और मेरे पास करना न पड़े मुझे उनको याद 

पर है मुश्किल बड़ी ये कालेज की जीवन जहां पड़ता है रहना बिना अपने माता पिता के अपने पास 

सोचती हूं मैं हर वक्त हर पल हर समय जिनके साथ जिनके गोद में बीता है पूरा बचपन

कैसे रहूं मैं उनसे दूर बिना करे मेरी प्यारी मां को याद ।


था एक वक्त जब करती मैं बड़ी परेशान अपनी मां को थी वो था मेरा बचपन जहां सोचा न था मैंने कभी 

की होना पड़ेगा कभी मां से दूर रहना पड़ेगा कभी मेरे मां के बिना करूंगी उनको बहुत याद 

अगर होता मुझे ये सब पता तो मान मैं लेती उनकी सारी बातें जब थी मैं छोटी रहती अपनी खयालों में हमेशा 

थी अपनी मर्जी की मालकिन सुनती सिर्फ अपने की थी करती सिर्फ अपने दिल की थी 

क्या था पता एक दिन करना पड़ेगा समायोजित दूसरों के साथ होगा कमरा एक मगर रहेंगे तीन जन 

रहूंगी एक जगह मैं ऐसे जहां करूंगी अपने मां के हाथों का बना खाना को हर वक्त याद 

पछताऊंगी ये हर वक्त सोच कर की क्यों नकारती थी मैं मां के हाथों बने खाने जो होता

इतना स्वादिष्ट था की रहे जाए इंसान चाटते अपने उंगलियां ।


था एक ऐसा वक्त जब आता बड़ा मज़ा था सताने में मां को अपने ना मान के उनकी कुछ बातें 

जैसे खाना खाओ इधर मत जाओ उधर मत जाओ बाद में पता चला मां के लिए वो जगह खतरनाक नहीं 

हमारे लिए वो बड़ा खतरा था जहां लग सकती थी हमें चोट छोटी नहीं बड़ी और बहुत गहरी 

ऐसे में अब होता है एहसास की लेना चाहिए था मुझे अपनी मां की बातें मान क्या पता हो जाता कब क्या 

चोट लगी मुझे हुई होती दर्द तो होता मेरी मां को था हर वक्त हर पल

बड़ी जल्दी हो वो जाती थी परेशान हर वो छोटी छोटी बात पर 

नहीं वो चाहते थे की जूझ जाऊं मैं किसी भी मुसीबत में की पछताना पड़े मुझे फिर बाद में 

नहीं वो ये सोचती थी की जितना मैं मुसीबतों से लडूंगी जितना मैं उनका सामना करूंगी

उतना ही मैं मजबूत बनूंगी और उतना मुझे हौसला मिलेगा बाकी सारे कठिन हालातों से

जूझ कर उनका सामना करने का।


थी मैं जब बहुत छोटी ना मैं पाती थी ठीक से चल ना मैं पाती थी सही से बोल 

तब करती थी मेरी मां मेरे सारे काम और उसके साथ करती वो घर के सारे काम भी थी 

जिसके साथ वो इसका खयाल रखती थी की में उतर न जाऊं पलंग या चौकी या कोई कुर्सी पर 

करती वो घर के और बाकी सारे काम थी मगर रेहेता उनका ध्यान हर वक्त हर पल हर जगह सिर्फ मुझ पर हीं था 

की कर क्या रहीं हूं मैं कहीं पलंग, चौकी या कुर्सी से उठ कर नीचे उतर ने की कोशिश तो नही कर रही 

वो देखते देखते उसके मां घर और बाकी सारे काम कर लेती थी खतम और साथ ही साथ उसके 

मां मेरा भी पूरा ध्यान रख लेती थी अगर मैं उतर ने की कोशिश करूँ

और पकड़ी जाऊं तो ले वो लेती थी मुझे अपने साथ और खिलाती मुझे खाना थी कर के अपने सारे काम पूरे

और उसके साथ मुझे देती थी वो सुला पलंग में अपने ।


भोली हैं वो मेरी मां बड़ी जिन्हें हर वक्त हर पल हर समय हर जगह जहां भी वो जाती थी 

बिलकुल मैय्या यशोदा की तरह उन्हें सिर्फ मेरी ही चिंता लगी रहती थी हर पल

उन्हें मेरी चिंता ही सताती और परेशान करती थी 

कह मैं उन्हें कुछ भी लूं सच या झूठ मज़ाक में मेरे हर बात पे वो करती थी आँखें मूंद कर भरोसा 

पूछती नहीं वो थी एक बार भी क्या मैं बोल सच रही हूं या फिर झूठ बस मेरे हां में हमेशा हां मिलती थी 

ऐसी मेरी भोली मां हैं जो आज समझ जाती है की कौन सी बात मेरी कही हुई सच और

कौन सी है मज़ाक वो भी बड़े दिनों के बाद 

मगर बचपन था वो और आज मैं हो गई हूं बड़ी सालों पहले जैसे थी उससे हो गई हूं मैं कई ज़्यादा समझदार 

फिर भी मेरी मां आज भी वहीं है जो समझती आज भी मुझे छोटी बच्ची है

जो रख ना सके खुद का खयाल ज़रूरत पड़े हर वक्त मेरी मां की जिनके बिना रह ना पाऊं मैं एक भी पल ।



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