ओ मेरे कान्हा
ओ मेरे कान्हा
ओ मेरे कान्हा ओ मेरे कान्हा आओगे तुम जल्द हीं तुम इस बार
मनाने अपना जन्म दिन, खाने तुम माताओं के हाथों से बने स्वादिष्ट भोजन, जब चढ़ाएंगे तुम्हे पूजन में मंदिर में छप्पन भोग
जब आओगे तुम करने संसार का उद्धार, तब भूल न जाना अपने हीं सारे भक्तों को करने उनके दुख कष्टों के निवारण
आना तुम घर मेरे ज़रूर देने अपना दर्शन मुझे, करने पूरी हमारी मनो कामनाएं चढ़ाएंगे तुम्हे तुम्हारा मन पसंद भोजन
खिलाएंगे तुम्हे मन भरकर भरपूर पेट तुम्हे तुम्हारा प्रिय माखन
जो कभी खाते थे तुम जब आए थे द्वापर युग में करने श्रृष्टि का उद्धार
अपने यशोदा मैय्या तथा अनेक गोपियों के हाथों से बने
और अपनी प्रिये राधा के हाथों जब रहते थे तुम बन कर ग्वाला
तब चुराते थे घरों से सब के रखी मटकियों में माखन मिल कर अपने मित्रों और सखाओँ के संग
तोड़ ते थे न जाने कितनी मटकियां और गागरियां कहे लाते थे तुम सबके मुख से बड़े प्यार से माखन चोर
मोह लेते थे तुम सबके मन जो कहे न सके तुम्हे कोई
रंगे हाथों जाते भी थे तुम गोपियों से पकड़े फिर भी न पाता कोई तुम्हे डांट थे जो तुम इतने मनमोहक
ले कर इसीलिए जाते तुम्हे मैय्या यशोदा के पास करने तुम्हारी शिकायत जिससे हो जाती थी मैय्या बड़ी परेशान
हो कर तुम्हारी माखन चोरी से तंग बांधने चली थी तुम्हे स्तंभ के संग
मगर था मन में उनके अत्यंत हीं कष्ट और भय की न रहे हो तुम्हे पीड़ा सताते थे
तुम गोपियों चुराकर उनके वस्त्र जब कर रही थी वो स्नान
ओ मेरे कान्हा तुम सबको सताना आओ मेरे तुम घर ना ओ मेरे कान्हा
होते हो तुम बड़े हीं प्रिय रोती रहती मैय्या सुन कर तुम्हारे क्रिया
हो जाते तुम मैय्या के आंसुओं से दुखी न करते तुम जा कर किसके घर से माखन चोरी
केहेलाते हो तुम सबके प्रिय मोह लेते हो तुम सबके मन और हृदय
ओ मेरे कान्हा थी तुम्हारी प्रिय राधा खाते थे तुम जिसके हाथ से बना खीर और माखन
माखन चोरी फिर भी करते थे सब तुमसे बड़े हीं निष्ठा से प्रेम भा लेते थे सबके मन को जो कहलाए तुम चित्त चोर
सताते थे तुम उसको बड़ा हीं फिर भी करती थी तुम से अनंत काल से प्रेम थे मन में उसके केवल तुम
है तुम्हे तुम्हारी जन्म दिन हार्दिक शुभ कामनाएं आओ खिलाऊंगी तुम्हे तुम्हारे प्रिय भोजन
झूलआऊंगी तुम्हे बनाके मैं बाल गोपाल अपने झूले में जो तुम कभी करते थे झूला
था समय एक करते थे तुम अपनी प्रेमिका राधा के संग रास लीला यमुना तट पर संग गोपियों के
है आज भी जाता माना वृंदावन में इसीलिए बंद होते हैं सारे द्वार
क्यों की आओगे तुम रचाने अपने राधा के संग रास
आयेगी संग तुम्हारे राधा खिलाने तुम्हे उनके हाथों से बने स्वादिष्ट माखन जो बुझायेगी तुम्हारे प्यास करेगी तुम्हारा मन श्यांत
हो तुम सबके प्रिय आओगे जब तुम यहां पे करेंगे मिलकर सब तुम्हारी मनोरंजन
झुलाएंगे तुम्हे बिठाके तुम्हारे मन पसंद झूले में
खिलाएंगे तुम्हे सब भर पेट माखन चढ़ाएंगे तुम्हे छप्पन भोग मंदिर में
ओ मेरे कान्हा अब तो तुम आ जाओं ना तुम है मैने बुलाया ना।
