जन्माष्टमी की ढेरों बधाइयां
जन्माष्टमी की ढेरों बधाइयां
जब हो रही वासुदेव देवकी आनंद से घोर उल्लास के साथ विवाह
तब हुई थी मेघों की कड़ कड़ाहट से आकाशवाणी
जिसमे मिलकर सारी देवताओं ने दी थी अहंकार कंस को चेतावनी
की सुधर वो जाए अपनी हरकतों से अन्यथा होगा उसका वध
देवकी की आठवीं संतान के हाथों जो सुनकर कंस
भूल गया बहन से अपने सारे रिश्ते नाते अपना भाई होने का कर्तव्य
और बनाने चला उनको बंदी डालके महल का कारावास में
रोती रही मासूम देवकी मांगती रही अपने नव जात शिशुओं के प्राण
हर लेता हर समय था कंस बचाने हेतु अपने प्राण
देवकी ने दिया जन्म जब शिशु को, तुरंत हीं बाद जाता कंस को
जन्म हुवे शिशु का समाचार, फिर आता कंस कारागृह में कंप कंपाता भूमि
और पेहरे दिए हुवे अन्य सभी पहरेदार
खेलता हर शिशु रेहेता अपने माता पिता के गोद में छीन लेता
उन नव जात शिशुओं को और पटक देता उन्हें ज़मीन पर
रोते हुवे खड़े हो कर देखते रहते माता पिता उसके
कर न पाते कुछ उसको बचाने हेतु चुप चाप होते रहते हताश
देते रेहेते हर समय अपने शिशुओं का बलिदान
सोच कर उसे उनका दुर्भाग्य सेहेते रहते कंस का अत्याचार
पटक पटक कर ले लिए कंस ने देवकी और वसुदेव के छटे शिशुओं के प्राण
नहीं थम रहा था पृथ्वी पर कंस का अत्याचार देख कर
ऐसे हृदय विदारक दृश्य थर थर कांप रहे थे सबके हृदय
कर रहे थे प्रभु के गुहार के आए वो पृथ्वी पर करने उनकी रक्षा
बचाने उन्हें कंस भाती दिखने वाले ऐसे मनुष्य रूपी दानव से
आई थी सातवी संतान की बारी जब थी माता देवकी
गर्भवती अवस्था में पहुंची कंस को समाचार
थे खुश सब तब था समय जब तय गया था किया की नारायण से पहले
इस बार लेंगे शेष नाग जन्म प्रथम बार
थे माता के पेट में शेषनाग जब माता यशोदा ने प्राण
आठवीं संतान के बचाने हेतु भेजा एक उपहार माता रोहिणी के हाथों
जिसे सातवी संतान की रक्षा हेतु उपयोग करने का
सोचा माता देवकी ने जो था अस्वीकार शेषनाग को
जिसके कारण नारायण ने शेषनाग के अंश को माता
देवकी के गर्भ से माता रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया
जिसके हेतु माता देवकी के पेट में हीं हो गई उनका साथवा संतान की मृत्यु
फूट फूट कर बहाए आंसू माता देवकी की होगा
कब उनका ये कठोर दुर्भाग्य शेष कब होगा उनका भाग्य जाग
जब आया माता के पेट उनके आठवीं संतान तब हुई वो
बड़ी प्रसन्न जो लाया कंस के मुख में चिंता की लकीरें
जब हुवा उनका जन्म अपने आप खुल गए सारे
कारागृह के द्वार सो गए गहरे निद्रा में सारे पहरेदार
खुल गई माता देवकी और वसुदेव के हाथों की बेड़ियां
दिखाया प्रभु ने मार्ग की छोड़ आओ मुझे सुरक्षित माता यशोदा के घर
तब आया था जमुना में सबसे भयंकर बाढ़ करने हेतु श्री कृष्ण के चरण स्पर्श
रख के माथे पर अपने चले थे वासुदेव बिना जाने अपना लक्ष्य अपना गंतव्य
पहुंचे वो सारे दुविधाओं के सामना करके नंद बाबा के घर
जहां लिया था माता योगमाया ने जन्म
थम गया था समय अपने आप रख कर श्री कृष्ण को
माता योगमाया के जगह ले चले वो योगमाया को संग अपने
जानते हुवे की होगा क्या आगे सोच कर ये भगवान का नियम
पहुंचे जब वह पुनः कारागृह देख कर हो गई माता देवकी
चिंतित उठा लाए किसकी बालिका को जिससे न बक्शेगा कंस
हो गए सारे द्वार बंद, बंध गई पुनः वासुदेव के हाथों में
हथड़ियां जाग गए सारे द्वारपाल पहुंचाए संदेश महाराज को
जन्म हुवा है इस बार कन्या का सोच कर ये की है एक कन्या
उसकी मृत्यु के कारण आया वो उसका चिन्ह मिटाने
जैसे हीं छीना वो हाथों से उनके गुहार लगाने लगे वो की है
वो बालिका कैसे बनेगी वो तुम्हारे मृत्यु के कारण
मगर ना सुना वो किसकी बात जैसे उठाया वो योगमाया को
पटक ने हेतु जमीन पर फिसल गई वो कंस के हाथों से
लिया उन्होंने उनका असली रूप किया कंस को
सावधान की उसका मृत्यु गोकुल में बढ़ रहा है
कह कर इतना होगई योगमाया लुप्त डाल कर
कंस को गंभीर चिंतन में की जानेगा कैसे है वो कहां छुपा
उसके अगले दिन सब मना रहे थे गोकुल में खुशियां मना रहे थे आनंद का उत्सव
हूवा कृष्ण नंद गोपाल यशोदा नंद लाल का जन्म
मगर मथुरा में दिया कंस ने उसकी राक्ष्यासी बहन पूतना के हाथों
हर नव जात शिशु का अंत जो पल रहा है गोकुल में
जब आई करने वो कृष्ण का संघार मार कर बाकी शिशुओं को पिलाने गई वो अपना विष
पी लिया नन्हे कान्हा ने उसका सारा दूध कर लिया उसका अंत
ऐसे ही ठेले का रूप लेने वाले शक्तासुर का भी किया कृष्ण ने अंत था
किया कृष्ण ने उसके बाद बवंडर के भाती दिखने वाले
त्रिनावर्ता असुर का अंत जो ले गया था कृष्ण को आसमान की ऊंचाई पर
किया फिर कृष्ण ने अघासुर जो था एक विशाल सर्प
भाती दिखने वाला असुर जिसकी बहन थी पूतना
किया उसके पूर्व था कृष्ण ने बगोले भाती दिखने वाला
बकासुर का अंत जो था भाई पूतना और अघासूर का
किया उसके बाद कृष्ण ने कालिया नाग पर नृत्य जो था
छिपा यमुना में कर रहा था जल को विषैला गरुड़ के भय से
ऐसे हीं करते करते दुष्टों का विनाश अत्याचारियों का अंत समाप्त किया था
उन्होंने आतंक, किया था उन्होंने अपने हीं मामा कंस का संघार करने
हेतु धर्म का पुनर्स्थापना रचा था उन्होंने कुरुक्षेत्र में महाभारत
मगर कहलाए वो भी थे बालपन में माखन चोर जब चुराते थे
वो गोपियों के मटकियां से अपने सखाओं के साथ माखन
चुराते थे वो गोपियों के वस्त्र जब जाती थी वो करने यमुना में स्नान
फिर भी थे वो सबके मनमोहना बाल गोपाल कृष्ण कन्हैया जो करते हैं
अपनी प्रिय राधा तथा अन्य गोपियों के संग रास लीला
उठाया था उन्होंने गोवर्धन पर्वत कहलाए वो थे गिरीधारी जब दिया था
उन्होंने देवराज इंद्र को अपनी शक्ति का उत्तर
है कृष्ण मुरारी मुरलीधर लीलेधर कृष्ण दामोदर है
तुम्हे मेरी शुभेच्छा जब आए तुम्हारा जन्मदिन
है तुम्हे ढेरों बधाईयां ढेरों शुभकामनाएं है मेरा ये धन्यवाद आपको
आप आए हमारे संकट का करने विनाश सिखाने हमे प्रेम की परिभाषा।
