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SMRITI SHIKHHA

Others

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SMRITI SHIKHHA

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बांके बिहारी

बांके बिहारी

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ओ कान्हा ओ कृष्णा है रूप कई तुम्हारा जो देखे है संसार सारा

दिखते हो तुम बड़े प्यारे मोह लेते हो जग को सारे 

हो तुम अवतार नारायण का जो लिए हो तुम जन्म द्वापर युग में

हो तुम बड़े मनमोहक है तुम्हारे नाम कई जो है तुम्हारे कर्मों से प्राप्त

कहलाते हो तुम कभी मनमोहना तो कभी मनमोहक जो मोह लेता है मन सबका तो कभी चित्त चोर 

कहलाते हो माखन चोर बालपन से तुम फिर भी हो सबके दुलारे 

ओ कान्हा मेरे गिरिधारी कहलाए तुम गोविंद जब उठाया तुमने अपने कनिष्ठ उंगली से गोवर्धन पर्वत

ओ कान्हा जब चराते हो तुम गाय को कहलाते हो तुम गोपाला 

हो तुम सबके प्यारे दुलहारे सबके मनहोमोहक कुंज बिहारी 

कहलाए तुम द्वारकाधीश जब किया समुंदर पार द्वारका का निर्माण 

है अद्भुत सदैव लीला तुम्हारी अद्भुत है तुम बंसी बजैया 

कहलाते हो तुम बांके बिहारी जो है तुम्हारा सबसे प्रेम तथा सर्व प्रिय रूप

जब देते हो दर्शन हर लेते हो सबका इस रूप में चित ।


ओ कान्हा कृष्ण कन्हैया बंसी बजैयां कुंज बिहारी किशोर कन्हैया 

है बड़ा मनमोहक रूप तुम्हारा बांके बिहारी जो है तुम्हारा सर्वाधिक प्रेम करने वाला

तथा प्रेम में मोह लेने वाला रूप 

जो लिया था आपने करके संखाचूर भाती असुर को मुक्त 

जिसके कारण दिया था आपको देवी तुलसी उनकी सती सावित्री पत्नी ने श्राप 

थे आप स्वयं नारायण फिर भी केवल करने हेतु उनका उद्धार तथा जग

और सृष्टि का प्रारंभ लिया अपने ऊपर आपने वो श्राप 

था वो श्राप आपके और आपके प्रेमिका राधा के ऊपर जो था आप सदैव के लिए हो जाएंगे एक दूसरे से दूर 

था वो श्राप देने आप दोनों को विरह का दुख और पीड़ा करने आप दोनों को सदा के लिए एक दूसरे से विलग्न 

था वो श्राप जो बना देगा आपको एक पाषाण का देगा आपको एक पाषाण का रूप ।


लिया ठान फिर राधा ने बनने नहीं देगी आपको पाषाण का कभी 

लौटाएगी वो जगत को आपको क्यों की ठहरे आप जगत के पालनहार स्वयं जगत पीता नारायण 

करने आपको श्राप मुक्त बनने के बाद आप पाषाण किया राधा ने घोर तप जब वो बनाने चली शीला से आपके एक अन्य रूप का निर्माण,

था जिससे सारा सृष्टि तथा महादेव अनजान की है कौन सा ऐसा रूप

श्री कृष्ण कन्हैया का जिससे बनाने हेतु राधा हैं कर रही इतनी मेहनत

बुलाया उन्होंने देवी तुलसी को देने अपना परम त्याग की कर ले वो कृष्ण से विवाह कर देंगी

वो उनका सदैव के लिए त्याग 

बस है उन से इतनी सी विनती लौटा ले उनका श्राप 

थी देवी तुलसी अत्यंत कष्ट और पीड़ा में जिससे था मन उनका विचलित 

नहीं कर पाई वो राधा पर विश्वास इसीलिए मांगी उनसे प्रमाण की कैसे वो भूलेंगी उनके कृष्ण कन्हैया को 

मन लगा कर ज्योत कर अपने भीतर का सारा कृष्ण प्रेम कृष्ण भक्ति 

शीला से खोदने लग गई कृष्ण के अन्य रूप की मूर्ति भूल कर अपना भूख और प्यास 

केवल था मन में एक ही प्यास ढूंढना अपना प्रेम का अन्य रूप ।


था उत्सुक ये सारा जगत पूरा की क्या है बना रही इतनी बड़ी शीला से देवी राधा की

आएगा क्या निकल कर इस विशाल पाषाण से 

जब बन गया वो रूप पाषाण में थे नेत्र उसकी मोह ने वाले 

जो सताता राधा के संग छिप के देख रहे सारे प्रिय जन और शत्रु 

झपकाते हीं अपने पलकों को लुप्त हो जाता वो शीला जो बताता है स्वयं था वो अत्यंत ही मायावी 

ढूंढ ढूंढ कर राधा और बाल दाऊ थक जाते देख उसकी लुप्त होती माया

थे कभी पाषाण में आंखें झपकाते तो कभी राधा पर मुस्कुराते 

जब हो गए राधा अत्यंत परेशान शीला तोड़ कर निकले वहां से इंसान

देख ये सुध बुध खोई थी देवी राधा की शीला से कैसे प्रकट हुआ मनुष्य जो कहते हैं नाम उनका अत्यंत ही मनमोहक है 

जो कहलाते हैं बांके बिहारी जो थे कृष्ण के अन्य रूप 

आए थे कृष्ण को मुक्त कराने देवी तुलसी के श्राप से 

करने दंतवक्र का अंत करने उसको आसुरी शरीर से मुक्त 

जिनका है मंदिर में नाम बड़ा है उनको परदे से छुपाया जाता 

की कहीं हो ना जाए भक्त उनकर देख कर उनका मनमोहक रूप स्वयं सदैव के लिए मंत्रमुग्ध 

ओ कृष्ण कन्हैया कहलाए जाते हो तुम अनेकों नाम से पर है सबसे सुंदर रूप तुम्हारा

जो कर देता है दुष्ट शक्तियों को भी मंत्रमुग्ध ।



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