तू कन्हैया है सबका प्यारा
तू कन्हैया है सबका प्यारा
ओ प्यारे कान्हा, हमारे कान्हा, राधा के किशोर
ओ प्यारे कन्हैया, नटखट गोपाला, जग में तुमसे सुंदर है कोई नहीं
मगर है सबसे प्यार वो जो तुमने रचा वो बृंदावन है जो जान जाता तुम्हारे और राधा के प्रेम का चिन्ह
है वो कितना सुंदर जो मोह ले हर मनुष्य का मन
जबसे हुए तुम जनम और कहलाए हो यशोदा मैया के नंदलाला तो जाने न जाने होता सब का मन प्रसन्न
वो तुम्हारे आंखें मोह ले सब का मन जिसके लिए कहलाते हो तुम प्रिय मनमोहन
वो मनमोहन प्रिय मन मोहना जो चुरा ले सब का चित्त और कहलाए तबसे तुम चित्त चोर
हो तुम कितने नटखट जो ले जाते थे चुरा के सबके घर से माखन, लट्ठ लेके गोपियां भाग ती तुम्हारे पीछे थी
इसलिए कहलाए तुम प्रिय माखन चोर, चोर जो मोह ले जाए सब के मन को ।
ओ प्रिय कान्हा, मेरे कन्हैया, ओ मेरे श्याम, मेरे गोपाल, है जग में कोई तुम जैसा सुंदर, जो मोह ले मन को सबके और करदे उनको तनाव मुक्त
ओ मेरे कान्हा, मेरे कन्हैया, जग में तुमसे सुंदर कोई नहीं, हो तुम सबके प्रिय, सब के लाड़, हो तुम मैया यशोदा के नंद लाला, सबके प्रिय गोपाला,
प्रेम केवल ना करते तुमसे सिर्फ गोपियां करता पूरा गोकुल, है गोकुल के राजकुमार,
तुम प्रिय हो सारे प्राणियों का, प्रेम हो सारे मासूम प्राणियों का, जो तरसे तुम्हारे बांसुरी सुनने
इतने कम आयु में भी करते रहे तुम सारे असुरों का संहार जिन्हें था भेजा तुम्हारे क्रूर मामा कंस ने ।
ओ कान्हा, मेरे कान्हा, मेरे कन्हैया, ओ गोपाला, यशोदा नंदलाला
है तुमसे कोई प्यारा न जगत में कोई तुमसे कहलाते हो तुम वैकुंठ में विष्णु, जिन्हें है हम पूजते जगत के पालनहार
हो तुम कितने सुंदर, कितने चंचल गोपाला, ओ प्रिय कान्हा मेरे गिरिधारी, उठा लिया था तुमने पूरे गोवर्धन पर्वत को अपने कनिष्ठा में
तोड़ने घमंड, स्वर्ग के राजा इंद्र देव का जो वर्षा के हैं राजा जो समझ बैठे थे स्वयं को सबसे शक्तिशाली
करते पूरे गोकुल को विवश करने उनकी पूजा मांगने उनसे श्यामा कहा था नंद गोपाला, गिरिधारी ने करने गोवर्धन की पूजा
सुन के सब प्रिय नंद लाला की बात करने लगे गोवर्धन की पूजा हुए थे ये देख इंद्र देव बड़े क्रोधित, मंगवाने गोकुलवासियों को उनसे श्यामा करने लगे जोरों की वर्षा
की भसा ले जाए उनकी लाई हुई बाढ़ पूरी गोकुल मान ले हार सारे गोकुल वासी और स्वीकार ले दंड ना करने के लिए उनकी पूजा
कैसे होने देते ऐसे हमारे नंद लाला प्रिय गोपाला करने चूर घमंड इंद्र देव का उठाने लगे गोवर्धन पर्वत उनके कनिष्ठा में
देख के गोकुल वासी हुए बड़े अचंभित बुलाए उनको कान्हा की ले ले वो शरण पर्वत के तले जो वर्षा चलता रहा पूरे एक सप्ताह तक
देख कर ये हुए आश्चर्य बड़े इंद्र देव, हुआ उनको एहसास की हो गई है उनसे कोई बड़ी भूल जो पहचान न पाए वो बालक को
आए वो धरती पर मांगने उनसे श्यामा कृष्ण से की हो गई उनसे कितनी बड़ी भूल ताकि कर सके वो पश्चाताप
रोक दी उन्होंने वर्षा और कर दिया सब ठीक ये जानने पश्चात कि कान्हा हीं है जगत चालक श्री विष्णु, ऐसे हो तुम कान्हा करते सबकी रक्षा
ऐसे कहलाए तुम थे गिरिधारी गोविंद, गोपाल मेरे प्रिय कन्हैया, कृष्ण नंद लाला ।
बाल बचपन में किया था तुमने पूतना का वध, न जाने कितनो से था बचाया तुमने सबको करने मामा कंस का घमंड चूर फिर भी था वो अपने मद में चूर
समझता स्वयं को सबसे शक्तिशाली मगर है भयभीत एक बालक मात्र से जिसका करने संहार न जाने भेजा उसने कितने असुरों को
जिनमें से कुछ को आया समझ की आवेश में आ कर जा रहे थे वो करने कितने बड़े पाप और हो गए वो मुक्त और कुछ जो थे बड़े घमंडी किया उनका घमंड चूर चूर कान्हा ने
थे वो बड़े भाग्य शाली जिनको मिला वो स्वर्ण मौका तुम्हे देखने का करने तुम्हारी सेवा खिलाने तुम्हे गोद में अपने
दिखाने तुम्हे अपने ममता की रेखा , करने तुमसे मित्रता दर्शाने तुम्हे मित्रता थे वो लोग बड़े भाग्य शाली जो जन्मे थे द्वापर युग में करने तुमसे भी ।
ओ कान्हा, कान्हा, गए तुम बरसाना मिलने तुम अपने प्रिय राधा को जो आई थी गो लोक से किसी श्राप के कारण जो भूल गई थी तुम्हे
आए तुम बरसाना करने राधा के संग वृन्दावन का निर्माण, सिखाया तुमसे सबको होता है क्या प्रेम, कहते हैं आखिर प्रेम किसको ये दर्शाया तुमने
राधा को याद आए न आए तुम्हारा गो लोक की प्रेम कहानी मगर हो गया उनको भी प्रेम तुमसे अनंत और पावन इतनी सुंदर कहानी थी तुम्हारी
न जाने जमुना के तट पर रचाए तुमने कितने रास, राधा और संग सारे गोपियों के मन खुशियों और प्रेम से झूम उठे माता जमुना के और अन्य सारे देवी देवताओं के होना चाहते वो आपके रास में शामिल
जताने अपने आनंद उल्लास और अपना प्रेम केवल तुम्हारे लिए कान्हा ।
फिर आया वो समय जब तुम गए छोड़ कर बरसाना सदैव के लिए ताकि कर सको कंस का अंत और सिखा सके पूरे जहां को पाठ प्रेम का और ब्रह्माण्ड का
था समय दुख और विरह का जब पता चला माता यशोदा और नंद बाबा को तुम्हारे उनके पुत्र ना होने का और देवकी माता और पिता वासुदे के पुत्र हो
और करना है तुम्हे उनको मुक्त कंस के जाल से और करना भी था तुम्हे कंस का अंत
जो जानते हुए और न चाहते हुए भी जाने दिया तुम्हे तुम्हारे वृन्दावन वासियों ने तथा माता यशोदा और बाबा नंद ने की कर सको उस दुष्ट का अंत और मुक्त कर सको सारे मथुरा वासियों को उस दुष्ट के आतंक से
था इतना प्रेम तुम्हारे और राधा के बीच न चाहते हुए भी पुनर मिलन की आशा रख के छोड़ गए थे तुम राधा को विरह का दुःख देके और लेके संग अपने
किंतु मन में राधा के बस्ते केवल तुम और तुम्हारे लिए उनका अनंत प्रेम था जो किसी कष्ट के कारण भी भूल ना पाई तुमको करते हुए अपने पुनर मिलन का इंतजार
कर ने के बाद कंस वध किया तुम द्वारका का निर्माण समुद्र पर करके अपने राधा का स्मरण बने तुम राज तथा पूजनीय स्वामी द्वारका का और कहलाए वहां के द्वारकाधीश ।
किया फिर तुमने विदर्भ की राजकुमारी रुक्मिणी से विवाह जो करती थी तुमसे प्रेम बिना देखे तुम्हे, मान लिया था उन्होंने तुम्हे मन में अपना स्वामी
और था उन्हें इतना विश्वास की लिख दिया था उन्होंने आपको पत्र की कराए उनका अपरहण करने उनसे विवाह अन्यथा त्याग दे वो अपना जीवन
बचाने उनका सम्मान और करने उनके सम्मान किया था उनके भेजे गए पत्र अनुसार और किया अपने उनसे विवाह
ऐसे व्यक्ति थे आप महान जो बचाने किसी स्त्री का सम्मान और रखने उनकी मान किया उनसे विवाह और दिया उन्हें अपनी पत्नी होने का स्थान
इसी प्रकार न जाने करने कितने स्त्रियों का सम्मान किया उनसे विवाह और दिया उन्हें आपकी पत्नी होने का स्थान और की आपने १६१०० स्त्रियों की रक्षा उस घातक असुर नरकासुर से ।
फिर लाए तुम राधा को अपने दूर करते उससे अपने विरह को दिखाने उसे पूरी द्वारका नगरी जिसका किया था तुमने निर्माण दर्शाने तुम्हारा और राधा का प्रेम
इतना प्रेम था तुम्हारे और राधा के मध्य की खुशी से झूम उठती थी पूरा संसार कोई शिकायत न थी तुम्हारे पत्नियों को न तुमसे और न हीं राधा से
सब थी द्वारका में रानी के उपाधि से अति प्रसन्न रहती अपने अपने महलों में बड़ी खुश जहां सदैव रहती थी वो अपने कृष्ण के संग
वहां थे मौजूद कृष्ण अपने सारी रानियों के संग रचाते वो अपनी लीला कहलाते वो लीलाधर सब थे लीला से हैरान परंतु सब थे बड़े संतुष्ट
थी न कोई जीवन में कमी उनकी जब थे उन सब के जीवन कृष्ण सदैव जताते सबसे सबके प्रेम कहलाते वो बंसीधर कन्हैया
ओ कान्हा मेरे प्यारे कान्हा हो तुम सबके प्यारे सबसे सुंदर और सबसे निराले, जग में तुमसे सुंदर कौन है जो मोह ले सबका चित और कहलाए मन मोहना ।
