प्रेम
प्रेम
कभी कभी संशय होता है मुझे कि
हम में प्रेम भी है या हम महज
आदतो से ही बंधे हुए हैं
आदते संग रहने की
या फिर विलग ना रह पाने की
आदते तुमसे ही सुबह होने की
या फिर तुम्हारे ही ख़यालो में डूबकर सोने की
आदत तुम्हे मनाने की और तुमसे मनुहार करवाने की
ये जीवन जीना भी तो एक आदत ही है.
तो कहीं ये प्रेम की भी तो आदत नहीं हो गई है हमें !