धरती बर्बादी की ओर।
धरती बर्बादी की ओर।
इंसान की करतूतों से,
मौसम बदल गये,
कभी अधिक बारिश,
और कभी सुखा पड़ गया।
कहीं बेइंतहा ठंड,
कहीं भीषण गर्मी से,
सामना हुआ।
कभी बेमौसमी ॠतुओं की,
बात सामने आई,
और पृथ्वी वासियों की हालत डगमगाई।
अगर हम,
पेड़ों को न काटते,
अपने सच्चे दोस्तों को पहचानते,
उनके सरंक्षण की चिंता करते,
तो ये दिन,
कभी नहीं देखते।
नदियों को साफ रखते,
अपना कचरा,
उनमें न फैंकते,
बड़े बड़े डैम न बनाते,
उनका दोहन,
विज्ञानिक ढंग से करते,
तो शायद इस,
त्रासदी से बच जाते।
अपनी जनसंख्या पर,
नियंत्रण रखते,
अधिक उत्पादन लेने के चक्र में,
रसायनों का उपयोग न करते,
बल्कि प्राकृतिक खाद का,
उपयोग करते,
तो धरती,
कम पानी मांगती,
और कभी बंजर नहीं होती,
प्राकृतिक संतुलन कायम रहता,
हम कम बिमारीयों का,
शिकार होते,
हमारे पैसे बच जाते,
जिससे हम समृद्ध रहते।
अगर हम घर,
मिट्टी के बनाते,
छत घास की डालते,
पोताई गोबर से करते,
तो ये घर,
सर्दी में गर्म,
और गर्मी में ठंडे रहते,
किसी ऐसी और फ्रीज की,
जरुरत नहीं रहती,
और ये सब पर्यावरण
को,
हानि नहीं पहुंचाते,
और हमारे मौसम,
अपनी चाल से ही चलते,
हम प्रकृतिक त्रासदीयों से बच जाते।
लेकिन दिक्कत ये,
हमने ऐसे हालात बना दिए,
हमारा पर्यावरण
पूरी तरह से नष्ट हो चुका।
परंतु हम,
अब भी नहीं सुधरते,
इसे और नष्ट करने में लगे रहते,
इसका उपचार करने की बजाय,
इसमें और जहर घोलते रहते।
अब आ रहा,
पर्यावरण
संबंधी सम्मीट,
सारी दुनिया के नेता,
हो रहे इकट्ठे,
चलो सब मिलकर,
बनाएं व्यावहारिक योजना,
पर्यावरण
बचाने के लिए,
साधनों का मिलकर करें उपयोग,
अमीर देश गरीब देशों की मदद को,
आगे आएं।
नई तकनीक,
आपस में वांटे,
अगर करें कोई,
किसी भी तरह का उलंघन,
तो उसे तुरंत,
सजा दें,
योनि हुई त्रासदी को,
ठीक करने का जिम्मा डालें।
चलो एक,
अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण
न्यायालय बनाएं,
सारे देश मिलकर,
अपनी क्षमता अनुसार,
उसमें साधन लगाए,
जो भी जाए,
नियम के विरुद्ध,
उस पर वहां,
मुकदमा चलाएं,
और अगर पाया जाए,
कुछ ग़लत,
तो फिर दंडित करें।
