श्रध्दांजलि
श्रध्दांजलि
मैं भाव अपने अर्पण करूँ
बना हृदय -प्याले,
कैसे श्रध्दांजलि दूं तुम्हें
ये वतन पर मर-मिटने वाले !
शत-शत नतमस्तक नमन करूँ,
या तुझ पर अपना कफन करूँ,
या यही सही होगा
मैं भी सीमा पर जाऊँगा,
जब कोई गोली सीना चिर देगी,
तब मुझे तेरी सही पहचान होगी !
यहां बंद कमरों में बैठ,
आराम किसी मखमली श्यीया पर लेट,
तेरा बलिदान कोई समझ ना पायेगा,
दो दिन मातम कर सहज तुझे भूल जायेगा।
पर अब इतिहास बदलना होगा,
हर क्षण तुझे स्मरण करना होगा
ये साहस तेरा था
जो तू सरहद पर खड़ा था,
किसी चट्टान जैसा अड़ा था,
वहां असंख्य वार झेलता रहा
तेरा सीना फौलादी,
तभी तो यहां रंगीन रही होली मेरी
और उजली रही दिवाली!
स्नेह से वंचित, परिजनों से परे,
कभी रेगिस्तान में तू जलता रहा,
कभी बर्फ में गलता रहा,
और मैं यहां चार रोटी की दौड़ में
जीवन कठोर समझता रहा!
मैं सदा रहा अपनों में मौजूद,
दुःखी रहा सुख-सुविधा के बावजूद
अपनी स्याही से
अपनी ही कहानी लिखता रहा
और तू वतन के लिए जीता रहा, मरता रहा !
मुफ्त में मिली आज़ादी
और मिलती रही !
तब कुर्बानी दी कईयों ने
और आज तक शहादतें होती रही !
कब तक
शहीदों की चिताओं से
अपनें घरों में करोगें उजाले,
अब तो उठो, स्वयं जलो
और बनो मशालें !
सूर्य समान प्रकाशित
हो समस्त देश
और पहुंचे ये संदेश,
“ये वतन पर मर-मिटने वाले
हम साथ हैं सभी
न समझना कभी तुम हो अकेले ।”
न समझना कभी तुम हो अकेले !!