अटल स्मृति
अटल स्मृति

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देह से नहीं विधमान मगर,
विचारों में जीवित हो,
“अटल” हो, अविरत हो !
हुआ राख धरा का या
नभ का तारका,
विदित नहीं, पर
हृदय – स्थान भारत के
तुम स्थापित हो,
“अटल” हो, अविरत हो !
भाव को शब्द,
शब्दों को मिली वाणी,
कही तुमने हम जन–मानस की
व्यथा कहानी,
करे स्मरण तो भारत – वर्ष
तुम पर गर्वित हो,
“अटल” हो, अविरत हो !
अब मौन हो,
महानिद्रा में लीन हो,
ये रत्न भारत के
अनंत में विलीन हो,
एक युग का अंत सही,
तुम नव–युग बन
फिर उदित हो,
“अटल” हो, अविरत हो !