महत्वाकांक्षा
महत्वाकांक्षा


महत्वाकांक्षाओं की सीमा जरूरी है !
हर बात मन की हो,
ये क्या जरूरी है ?
हो खेल या ज़िन्दगी,
जीत ही हो हर बार,
क्या ये जरूरी है ?
है पंख तो उड़ना चाहोगे,
गगन के पार क्षितिज तक
पहुंच भी जाओगे,
पर कुछ देर ठहरना भी जरूरी है,
अपने-से कुछ परिंदे छुट गये पीछे,
उनकी राह देखना भी जरूरी है,
हर बार तुम्हारा ही इंतजार हो
क्या ये जरूरी है ?
किस जश्न में गुम हो ?
देखो,अपनी मंजिल पर अकेले तुम हो !
नशा इतना भी ठीक नहीं,
कुछ होश में रहना भी जरूरी है,
लड़खड़ाते कदम संभलेंगे हर बार,
क्या ये जरूरी है ?
माना जीवन ने कुछ नहीं दिया,
जो भी पास है तेरे, खुद हासिल किया !
हाथों की लकीरों से कुछ न पूछा,
अपने खून-पसीने से खुद को सिंचा,
आसमान पर तू जा पहुंचा !
पर पैरों तले पुख्ता ज़मीन भी जरूरी है,
महत्वाकांक्षाओं की सीमा जरूरी है !
हर बात मन की हो,
क्या ये जरूरी है ?