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Savita Patil

Abstract

5.0  

Savita Patil

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महत्वाकांक्षा

महत्वाकांक्षा

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महत्वाकांक्षाओं की सीमा जरूरी है !

हर बात मन की हो,

ये क्या जरूरी है ?

हो खेल या ज़िन्दगी,

जीत ही हो हर बार,

क्या ये जरूरी है ?

 

है पंख तो उड़ना चाहोगे,

गगन के पार क्षितिज तक

पहुंच भी जाओगे,

पर कुछ देर ठहरना भी जरूरी है,

अपने-से कुछ परिंदे छुट गये पीछे,

उनकी राह देखना भी जरूरी है,

हर बार तुम्हारा ही इंतजार हो

क्या ये जरूरी है ?

 

किस जश्न में गुम हो ?

देखो,अपनी मंजिल पर अकेले तुम हो !

नशा इतना भी ठीक नहीं,

कुछ होश में रहना भी जरूरी है,

लड़खड़ाते कदम संभलेंगे हर बार,

क्या ये जरूरी है ?

 

माना जीवन ने कुछ नहीं दिया,

जो भी पास है तेरे, खुद हासिल किया !

हाथों की लकीरों से कुछ न पूछा,

अपने खून-पसीने से खुद को सिंचा,

आसमान पर तू जा पहुंचा !

पर पैरों तले पुख्ता ज़मीन भी जरूरी है,

महत्वाकांक्षाओं की सीमा जरूरी है !

हर बात मन की हो,

क्या ये जरूरी है ?


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