न रंग लगाओ अबके मेरे गाल
न रंग लगाओ अबके मेरे गाल
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संदर्भ: पुलवामा की दर्दनाक घटना के तुरंत बाद होली पर इस कविता को लिखा था। बात इतनी भी पुरानी नहीं और ऐसी भी नहीं कि आज याद न हो। ऐसी बातें कभी भूलनी भी नहीं चाहिए, बल्कि हमेशा इन जख्मों को ताज़ा ही रखें, याद रखें वो हर शहादत...
रहने दो, रहने दो
न रंग लगाओ अब के मेरे गाल!
हर रंग लगे फीका,
क्या पीला, क्या लाल?
न भरो पिचकारी न्यारी,
न उड़ाओ गुलाल इस साल,
रहने दो, रहने दो,
न रंग लगाओ अबके मेरे गाल!
कैसे भूलूं शहादतें शहीदों की,
वो चिताग्नि जो बनी
ज्वाला समस्त देश की,
भूल हर बात रंग जाऊँ
होली के रंगों में,
ऐसा श्वेत रक्त नहीं
बहता मेरी रगों में,
लिए मन में मलाल,
किस तरह रंग चढ़े गुलाल?
रहने दो, रहने दो,
न रंग लगाओ अबके मेरे गाल!
रंगना है तो रंग मुझे तिरंगा,
मल माटी इस भूमि की,
लगा मुझे रंग वतन का!
जब बैठा हो दंश लिए कराल व्याल,
और समक्ष हो अनसुलझे सवाल,
किस तरह रंग चढ़े गुलाल?
रहने दो, रहने दो,
न रंग लगाओ अबके मेरे गाल!
न रंग लगाओ अबके मेरे गाल!