सोच का ताला
सोच का ताला
बताया गया मुझे कुछ साल पहले ;
आज़ाद हो गए हैं हम अंग्रेजों की गुलामी से।
आज़ाद हैं हम गुलामी के ताले से;
जो चाहे कर सकते हैं हम अपनी मनमानी से।
तन की आज़ादी का क्या मतलब;
कब खोलोगे सोच के ताले को।
करो आज़ाद सोच को भी अपनी;
रखो साथ में औरत के पाले को।
कब तक रखोगे औरत को कैद;
कभी पिता,कभी भाई,कभी पति बनके।
खोल जो ताले सोच के;
वो भी चल सके सीना तन के।
पिता कहता है रखो संभाल के ताले मे;
बेटी पराया धन है।
क्यों नहीं पूछते उससे
कि उसका भी मन है।
पति के घर में भी परायी होती है;
नहीं होता है उसका कोई घर।
नहीं पूछता उससे आकर कोई;
जिंदा है वो या गई है मर।
क्यों लगा दिया ताला मुँह पर;
क्या वो बेजु़बान है।
जानवर नहीं होती औरत
वो भी एक इंसान है।
बदलो सोच को अपनी ऐ समाज;
दिमाग के ताले खोल दो।
हो गए आज़ाद हम विकृत सोच से;
अब ये सबसे बोल दो।
हां अब ये सबसे बोल दो!!!!