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Jay Bhatt

Inspirational

5.0  

Jay Bhatt

Inspirational

सफरनामा

सफरनामा

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सफर का था राही सफर का ही रह गया,

जाना था उस ओर,कही और निकल गया,

कुछ बातें थी तेरे दर्मियान,न तू कह सकी न मैं समझ पाया,

मंज़िल थी अभी दूर और मैं भटक गया।


ना तुझे पता था ना मुझे पता चल पाया,

ख़्वाबों की दुनिया में,अपना बसेरा बना आया,

अभी कुछ दूर ही चला था ,और कुछ समझ न पाया,

गलत रस्ते पे मैं, कुछ हदसे गुज़र गया।


निकल पड़ा हूँ मैं खुद की तलाश में,

नजाने कब पूरी होगी, 

सफर बड़ा लम्बा है,

एक दिन तो खुदसे मुलाकात होगी, 

पता  है रास्ता सीधा नहीं ,पर चलना नहीं छोड़ू गा, 

खुदसे मिलकर उस खुदा से मैं जरूर कहूंगा, 

पूरी ज़िन्दगी निकल गई खुद को ढूंढने में ,

अब तुझे ढूंढने निकलूंगा।


बड़ा वक़्त लगा दिया खुद को पहचानने में, 

अब बड़ी देर हो गई, 

नसीब ने भी कह दि

या ज़िन्दगी अधूरी रह गई, 

सोचा तो था की खुदकी तलाश में निकलूँ, 

पर मैं मुसाफिर कहा, 

नक़्शे कदम  ढूंढ़ते ढूंढ़ते ज़िन्दगी पूरी हो गई ।


हो चला है वक़्त मेरे जाने का,

जिसे सपनों में देखा उससे जान पहचान बढ़ाने का, 

लेने तो आया था वो मुझे मेरी कब्र पर,  

न जाने वो क्यों छोड़ गया,

शायद मुझे ले जाने का पैगाम वो भूल गया, 

ये सोच मेरे दूसरे खयालो में दब के रह गयी, 

जब अगली सुबह मेरी नींद से आँख खुल गयी, 

पर आज भी सोचता हूँ , क्या वो मुझे लेने आएगा, 

या फिर यू ही  छोड़ जाएगा ।


सफर था अंजाना और में निकल पड़ा हूँ,

सफर का था राही सफर कही ही रह गया हूँ ।


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