पूरा संसार (अनजान सफर)
पूरा संसार (अनजान सफर)
एक लारवा सोचे जाने जीवन में मैं क्या पाऊंगा
जीवन का कुछ सुख भोगूंगा या क्षण में ही मर जाऊंगा
डरते डरते भोर गुजारी डरते डरते रैन
एक जरा सी सोच ने देखो लूट लिया सुखचैन
मन ही मन में घबराता था हर क्षण बस खाता जाता था
जितना वो खाता जाता था उतना पचा ना पाता था
इक क्षण जीवन में ऐसा आया
अब तक था जो कुछ भी खाया
खुद को ही उसमें लिपटाया
घिरते-घिरते जाल बन गया
देखो कैसा कमाल बन गया
पर क्या यह उसका काल बन गया
चाहे जंग से वंचित था पर फिर भी था संतोष
उसको ऐसा लगता जैसे हो यह मां की कोख
समय गया बीते पल अरसे समय गुजर गया तरसे तरसे
अंदर बैठा ये ही सोचे जाने अब अगला सावन कब बरसे
खिली कोंपले सावन बरसा प्यूपा का भी मन कुछ हर्षा
पंख फैला कर देखा उसने अब तक था वह जिसको तरसा
पंख फैला नवजीवन ने फिर जैसे ही थी ली अंगड़ाई
खुद को देखा और यह सोचे कितनी प्यारी सूरत पाई
इस सारे कारण पर उसने किया नहीं था गौर
एक सफर अंजाना उसको ले आया किस ओर
कहां पेड़ की डाली बस थी जीवन का आधार
एक सफर ने दे दिया उसको यह पूरा संसार
