निवृत्त सेनानी
निवृत्त सेनानी
गिनो न तुम मेरी निवृत्त श्वास,
संजोए बैठा अभी भी राष्ट्र सेवा की आश।
छुए भी क्यों मुझे विपुल सम्मान ?
भले ही भूलो ऐ इतिहास,
तुम्हें मुबारक खरीदे हुए विश्व-ईमान !
मैं तो करूं अरि-मुड़ों का दान,
रक्त-तर्पण भर का अभिमान,
आजन्म लड़ने तक महमान,
एक पँजी है तीर-कमान!
मुझे भूलने में सुख पाती,
जग की काली स्याही,
दस कोसों दूर, भले बैठी समृध्दी-किर्ती;
आश्वस्थ हूँ देख नई जवानी,
गढ लूं इसे, ये केसरी लहू की रवानी,
है महंगी बड़ी, न हो अब कोई कोताही,
भारत का मैं हूँ एक सिपाही !