रोशनी की तड़प और अंधेरा का भय
रोशनी की तड़प और अंधेरा का भय
यह मौत सा कारावास कैसा है
यह डरावना सा पल ये कैसा है
साहब हमें अंधियारा से डर लगता है
चारों तरफ धुंध अंधकार सा पसरा है।
रोशनी देखने को हम तरस गए
लगता जैसे अब हम मर ही गए
ये कैसे आहट मरने की आवाज
अभी आई है
हर और अंधकार घुटन सी छाई है।
डर से जैसे अब कांप रहे अब जैसे
लगता हम हाँफ रहें
कौन है वहां कौन है वहां मैं बोल रहा
लेकिन अंधियारों में ना कोई बोल रहा
बेड़ियों जंजीरों में जकड़ा हूँ
जीने को जैसे मैं तरसा हूँ
हर दिन मैं यहां तड़पा हूं
सूरज की रोशनी लोगों को
मन में जीने का जज्बा देता है
लेकिन हमारे दिन की शुरुआत
घनघोर अंधेरे छटपटाहट से गुजरती है
रोशनी देखने को हम बहुत तड़पते है
ये दर्द का अहसास ये सूनी आंखें सब
कहते है
तारीख पे तारीख सुनाई है
कोर्ट से निराशा अब छाई है
हर बंदी के चेहरे पे कैसी रुसवाई छाई है
रो रो के आंसू पोंछ लिए
अब तो लगता जैसे आंसू सुख गए
जिंदगी भी पास ना आ रही
अभी रोशनी की आस भी खत्म हुई
हर बैरक में रोज कोई सिसकता रोता है
इस अंधकार से हर शख्स तड़पता
सोता है
हम बंदी एक पक्षी सा कैद हुए
इन सलाखें में है जैसे गहरे भेद छुपे
जिंदगी रास न आती है
मौत भी मुंह चिढ़ाती है
दाने दाने को तरस गए
हम भी भूखे जैसे पस्त हुए
चावल का सूप पीने को मिला
रोटी मिले जैसे हफ्तों हुआ
कोई बंदी मायूस है तो कोई बंदी
पछताता है
जब जीने की बात आती हैं हर
बंदी मजाक उड़ाता है
हफ्तों हफ्तों खाने को तरस गए
अपनों को देखे बरस हुए
इन सलाखों के पीछे जैसे त्रस्त हुए
रोने बहलाने के लिए भी कोई ना मिला
मिला तो बस अंधेरा ही मिला
चेहरे पे हजार सवाल मिले
कभी खामोश तो कभी उदास मिले
कभी आंसुओं सैलाब तो कभी गम
के बाजार मिले
साहब एक रोशन दान बनवा जाओ
हमारे अरमान पूरे कर जाओ
रोशनी देखने को तरस रहा
अंधेरे में जैसे भटक रहा
फांसी चढ़ने का अभी हमारा
फरमान आया है
हमने भी मंद मंद मुस्कुराया है।
कल सुबह रोशनी कैसी होगी
शायद चारों तरफ से स्वच्छ
नील गगन होगी।
अब घुट घुट के ना रह पाऊंगा
कल फांसी पे चढ़ जाऊंगा
अब सूरज की पहली रोशनी के
साथ दुनिया से रुखसत हो जाऊंगा।