मानवता की होड़
मानवता की होड़
दानवता की होड़ बड़ी, मानवता घटी जाये,
अपने पापों को दुनिया, पल भर में ही छुपाये।
कमी नहीं है मानवता की, मिलते कई हजार,
दर्द और गम में डूबे, वहां मिले खड़े तैयार।।
निर्धनता मिलती कभी, खाने को नहीं दाना,
मानवता की होड़ लगे, सारे जग ने ये माना।
भारत जैसे देश में कभी, भूखों नहीं मरता है,
अधिक कष्ट जन को देने से, प्रभु भी डरता है।।
कष्टों में कभी जन डूबे, आपदा कोई आती है,
टूट पड़ेगा जन सैलाब, मदद भी मिल जाती है।
रोटी, कपड़ा, पानी, दवाइयां लेकर आते लोग,
मानवता की होड़ से, मदद बड़ी मिल जाती है।।
खाने को दाना नहीं, हाथ पसारे जब मिलता है,
पूरी मदद करते मिलकर, चेहरा भी खिलता है।
गरीबों के भी साथी मिलते, कितने ऐसे हैं लोग,
पर टांग खिंचने वालों की, लगती जमकर होड़।।
दुर्घटना जब कोई होती, मानवता की लगे होड़,
सेवा खातिर लोग आएंगे, अपने अपने घर छोड़।
दिलों में सेवा भाव मिलेगा, ऐसा मेरा भारत देश,
कभी विश्वगुरू होता, आज तक मिले अवशेष।।
अभागा कोई कहाता, या कोई बड़ा हादसा पाता,
लोग मदद को आते ,जब उन्हें पता लग जाता।
मानवता की होड़ वहाँ पर, मिलती हैं तब खूब,
सेवा भाव दिल में हो तो, इंसान सफलता पाता।।
हर जगह मिलते हैं जन, अच्छे बुरे कहलाते हैं,
कुछ दूसरों को कष्ट दे, प्रसन्न दिल से हो जाते हैं।
पर धर्म कर्म मार्ग चले, वो जन बन जाते महान,
पाप, अधर्म जो करे, नीचता की होती पहचान।।
बेशक लोग बुरे होते, मानवता फिर भी जिंदा है,
पाप कर्म करने वाला जन, खुद पर ही शर्मिंदा है।
आओ बढ़ाये जन खातिर, निज दोनों मिल हाथ,
कष्ट में डूबा जन मिले, देना उसका बस साथ।।
